देश के एक हिस्से में पटाखा बिक्री की रोक के बावजूद जमकर हुई आतिशबाजी
दीपावली के शुभअवसर पर होने वाली बेहिसाब आतिशबाजी पर रोक लगाने के उद्देश्य से लिया गया उच्च न्यायालय का निर्णय बिना वजह ही विवाद का कारण बनता जा रहा है और देश व विभिन्न राज्यों की सत्ता पर काबिज एक तथाकथित राष्ट्रवादी दल अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं के सहयोग से इस मुद्दे को बल देता दिख रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि दीपावली के अवसर पर पिछले वर्ष हुई आतिशबाजी के चलते दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लगभग एक सप्ताह तक धुंध छायी रही जिसके चलते बुजुर्गों व बच्चों को होने वाली सांस लेने में परेशानी को देखते हुए सरकार द्वारा न सिर्फ कई तरह के इंतजामात किए गए बल्कि बच्चों के स्कूल भी लंबे समय तक बंद करने पड़े। लिहाजा आतिशबाजी को लेकर न्यायालय द्वारा दिया गया फैसला सामयिक व जरूरी करार दिया जा सकता है लेकिन इसे किसी धर्म विशेष पर थोपी गयी पाबंदी या फिर धार्मिक असहिष्णुता का दर्जा देना गलत है क्योंकि दीपावली को आतिशबाजी से जोड़ने के कारण पूरी तरह व्यवसायिक है और इनका धार्मिक भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। हां इतना जरूर है कि अगर न्यायालय द्वारा यह रोक कुछ पहले लगायी गयी होती तो त्योहारों के अवसर पर छोटा-मोटा व्यवसाय कर अपना खर्च निकालने वाला छोटे व्यापारियों का एक बड़ा तबका इस असामयिक मार से प्रभावित नहीं होता। वर्तमान में स्थिति यह है कि देश के तमाम पटाखा उत्पादकों का माल बाजरिया थोक व्यापारियों के छोटे व्यवसायियों के गोदामों तक पहुंच चुका है और न्यायालय की इस रोक के बाद व्यापारियों के इस वर्ग में हड़कंप की स्थिति है क्योंकि अगर वह इस उत्पाद को बिक्री के लिए ग्राहकों के बीच नहीं ले जाते हैं तो उन्हें अपनी कुल जमा पूंजी की वसूली के लिए तो एक साल तक इंतजार करना ही पडे़गा साथ ही साथ इस पूरी कवायद में माल के पुराने हो जाने के अलावा उसे फिर एक साल सुरक्षित रखने का खतरा भी है। लिहाजा न्यायालय का यह आदेश पटाखा व्यवसायियों के एक बड़े हिस्से पर बिना वजह की मार की तरह है और मजे की बात यह है कि न्यायालय पटाखों के निर्माण अथवा उसके थोक व्यापार पर कोई रोक लगाता नहीं दिखता। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि नोटबंदी व जीएसटी के लागू होने के बाद स्थानीय बाजारों की रौनक गायब है और मिठाईयों समेत अन्य खाद्य सामग्रियों के मामले में सरकारी निष्क्रियता के चलते बड़े मिलावट के खेल ने बाजार को पहले से ही चैपट कर रखा है। ऐसे में विभिन्न अवसरों पर कई तरह की सामग्री बेचने वाले छोटे व्यवसायियों अर्थात् लाला वर्ग का स्वाभाविक रूझान पिछले कुछ वर्षों में पटाखों की बिक्री को लेकर बढ़ना सामान्य परिस्थितियों का हिस्सा माना जा सकता है लेकिन न्यायालय के इस फैसले से यह लाला वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहा है और लाला वर्ग द्वारा समर्थित राजनैतिक दल माने जाने वाली भाजपाई विचारधारा के बीच भी इसे लेकर स्वाभाविक आक्रोश है और मजे की बात यह है कि भाजपा से जुड़े तमाम छोटे कार्यकर्ता व बड़े नेता सूचना संचार के विभिन्न माध्यमों के सहयोग से इस आदेश की अवहेलना करने या फिर धज्जियां उड़ाने की अपील करते दिखाई दे रहे हैं। इन हालातों में यह सवाल जायज है कि इस सामयिक व ज्वलंत मुद्दे पर भाजपा के शीर्ष नेताओं व सत्ता पक्ष का रूख क्या होगा और बार-बार स्वच्छता को लेकर अभियान चलाने का नारा देने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस अवसर पर जनता को क्या संदेश देना चाहेंगे। वैसे अगर सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो दीपावली हमारा राष्ट्रीय पर्व है और इस अवसर पर देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किए जाने के अलावा भव्य आतिशबाजी ने भी परम्परा का रूप ले लिया है लेकिन जब सवाल वैश्विक पर्यावरण व सम्पूर्ण मानव जाति के हित का हो तो परम्पराओं से थोड़ा बहुत समझौता किया जा सकता है और हिन्दू संस्कृति में तो अपने तीज-त्योहारों व सामाजिक आयोजनों में समयानुकूल बदलाव किए जाने व सर्वजन हिताय के उद्देश्य से नयी परम्पराएं गढ़ने की एक प्रवृत्ति लगातार देखी जाती रही है। हालातों के मद्देनजर यह कहना तो न्यायोचित प्रतीत नहीं होता लेकिन ऐसा लग रहा है कि चंद लोग न्यायालय के एक साहसिक फैसले के खिलाफ सम्पूर्ण जनता को भड़काने वाले तरीके से वह काम करने के लिए उकसाते रहे हैं जिस पर न्यायालय ने रोक लगायी है और जनतंत्र की सुरक्षा का दावा करने वाले कानून व हमारी पुलिस व्यवस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही जो इस किस्म के आपराधिक कृत्यों में संलग्न हैं। यह एक सच है और अगर थोड़ा ही पहले के परिदृश्य में जायें तो यह तमाम वह लोग हैं जो कुछ ही समय पूर्व तीन तलाक के मामले में न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों पर उसके शान में कसीदें पड़ रहे थे। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि न्यायालय द्वारा लगायी गयी रोक अथवा उसके तमाम फैसलों को न सिर्फ राजनैतिक चश्में से देखा जा रहा है बल्कि सही और गलत के परिदृश्य में अपने राजनैतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रखते हुए हर सरकारी या गैर-सरकारी फैसले की व्याख्या करने का हमारा नजरिया और सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिए विवादित मुद्दों को हवा देने की रणनीति इस देश में ऐसे हालात पैदा कर रही है कि यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता जा रहा है कि वास्तव मेें सरकारी फैसला क्या है और सरकार चाहती क्या है? यह स्पष्ट हो चुका है कि कानून की रोक को धता बताते हुए दिल्ली समेत एनसीआर के लगभग सभी क्षेत्रों में जमकर आतिशबाजी हुई और कानून की रखवाली को लेकर तत्पर होने का दावा करने वाली पुलिस चुपचाप हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही क्योंकि न सिर्फ पुलिस की कमान भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के हाथ में है बल्कि दिल्ली के चारों ओर लगने वाले प्रदेशों पर भी भाजपा का शासन है। सवाल यह है कि क्या सत्तापक्ष द्वारा की गयी कानून की यह अवमानना जायज है और एक जिम्मेदार राजनैतिक दल के रूप में भाजपा , क्या यह जवाब दे सकती है कि अगर दिल्ली समेत एनसीआर क्षेत्र में उसने पटाखे बिकने ही नहीं दिये तो यह आतिशबाजी के लिए जनता के बीच कैसे पहुंचे यह कोई अकेला मामला नहीं है बल्कि रोजाना भाजपा के राज में जनजीवन में लगातार ऐसे कई मामले सामने आ रहे है जब सरकार स्वंय ही अपने तंत्र की धज्जी उड़ा रही है या फिर नेताओं व सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों की शह पर लगातार रूप से कानूनों की अवहेलना करने पर बल दिया जा रहा है तो फिर व्यवस्थाओं को दुरूस्त कैसे माना जा सकता है। हमने देखा कि तथाकथित राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व की ज्वाला को भड़काकर सत्ता के शीर्ष तक पहुँची भाजपा अपने समर्थकों व मतदाताओं को जोड़े रखने के लिए जो भी हथकंडे अपनाती रही है उनसे उसे खुद राजकाज चलाने में मुश्किल हो रही है और जनता की समस्याओं का समाधान करने में पूरी तरह असफल भाजपा के नेता व सत्ता के शीर्ष पदो को संभालने वाले मंत्री अपनी इन असफलताओं को छिपाने के लिए मीडिया से मिलने में भी कतरा रहे हैं या फिर विज्ञापन के जरिये मीडिया के एक बड़े हिस्से का मुंह बंद कर दिया गया है लेकिन सवाल यह है कि इस किस्म की चालबाजी से सत्तापक्ष कितने ज्यादा समय तक जनता को भरमा पायेगा और हम कब तक इस तथ्य को विश्वास के काबिल मानते रहेंगे कि कुछ नेताओं या फिर सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे चेहरों द्वारा झाड़ू लेकर फोटो खिंचा लेने मात्र से हम स्वच्छता व वातावरणीय प्रदूषण को दूर करने का लक्ष्य पा सकते हैं या फिर सिर्फ न्यायालय द्वारा लगायी जाने वाली रोक के माध्यम से वायुमण्डल को प्रदूषित होने से कैसे रोका जा सकता है।