उत्तराखण्ड व उत्तरप्रदेश के अलावा गोवा में भी सरकार बनाने के दावे के बाद मणिपुर में सक्रिय हुऐ भाजपा के नेता।
उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड में मिले भारी बहुमत से उत्साहित भाजपा ने न सिर्फ गोवा में सरकार बनाने का दावा पेश कर मनोहर पर्रीकर के नेतृत्व में गेावा की सत्ता पर कब्जा कर लिया है बल्कि मणिपुर के मामले में भी भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रयास तेज कर दिये है और यह माना जा रहा है कि निर्दलीय विधायकों की मदद से भाजपा मणिपुर में भी सरकार बना सकती है। गौरतलब है कि गोवा व मणिपुर के चुनावों में काॅग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और यह उम्मीद की जा रही थी कि लगातार हार का सामना कर रही काॅग्रेस पंजाब के साथ ही साथ गोवा व मणिपुर में भी अपनी सरकार बना अपने डूबते अस्तित्व को बचाने में कामयाब होगी लेकिन चुनाव नतीजो के तुरन्त बाद दिल्ली से गोवा पॅहुचे सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बाजी पलट दी और काॅग्रेस को समर्थन दे रहे दो निर्दलीय विधायको के अलावा तीन विधायको वाली महराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का भी समर्थन हासिल कर गडकरी ने गोवा में सरकार बनाने लायक समर्थन जुटा लिया। वर्तमान में तेरह विधायकों के साथ तीन निर्दलीय विधायको के अलावा महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के तीन तथा गोवा फारवर्ड पार्टी के तीन विधायको को साथ लेकर भाजपा ने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के नेतृत्व में सरकार बना ली है और राज्यपाल मृदृला सिंहा ने मनोहर पर्रीकर को सदन में बहुमत साबित करने के लिऐ पन्द्रह दिन का समय दिया है। ठीक इसी तर्ज पर भाजपा ने अपने इक्कीस विधायको के साथ एक निर्दलीय के अलावा एनपीएफ के चार, एनपीपी के चार तथा एलजेपी के एक विधायक के समर्थन से मणिपुर में भी सरकार बनाने का दावा किया है और असम सरकार के मंत्री हेमन्त विश्व शर्मा के नेतृत्व में विधायकों का एक प्रतिनिधिमण्डल इस संदर्भ में राज्यपाल डा0 नजमा हेमतुल्ला से मिल भी चुका है। ध्यान देने योग्य विषय है कि गोवा में सत्रह विधायको के अलावा राकांपा के एक विधायक के साथ काॅग्रेस सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में उभरी थी तथा मणिपुर में भी काॅग्रेस ने अठाईस विधानसभा सीटो पर जीत हासिल कर टीएमसी के एक विधायक के साथ सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में सरकार बनाने लायक बहुमत जुटा लिया था लेकिन भाजपा ने कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए सत्ता की ओर बढ़ते काॅग्रेसियों के कदम रोकते हुऐ ने सिर्फ गोवा में सरकार बना ली बल्कि मणिपुर में भी वह सरकार बनाने के बहुत नजदीक जाती दिख रही है। हाॅलाकि नैतिकता की दृष्टि से देखा जाय तो गोवा में सबसे बड़ा राजनैतिक दल होने के कारण सरकार बनाने का पहला मौका काॅग्रेस को मिलना चाहिऐं था लेकिन सत्ता पर कब्जेदारी के खेल में भाजपा नैतिकता व व्यवहारिकता जैसे शब्दो को बहुत पीछे छोड़ चुकी है और देश की जनता ने भी इस तरह की राजनैतिक उठापटक के बाद सरकार बनाने की भाजपाई कोशिशों को सराहा ही है। उत्तराखण्ड के मामले में सत्तापक्ष से बगावत कर हरीश रावत सरकार गिराने के कोशिश करने वाले लगभग सभी विधायको व इन विधायको के साथ काॅग्रेस छोड़कर भाजपा में शमिल होने वाले अन्य नेताओं को हालियाॅ विधानसभा चुनावों के दौरान मिली सफलता और काॅग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले सत्तापक्ष के इन बागी विधायको पर भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोंपो के बावजूद विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिला प्रचण्ड बहुमत यह साबित करता है कि जनता ने भी भाजपा के इस गुरिल्ला अंदाज को पसन्द किया है लेकिन फटाफट वाले अन्दाज में देश के हर कोने का भाजपाईकरण करने को जल्दबाजी में दिखती मोदी-अमित शाह की इस जोड़ी को इतने पर ही सब्र नही है और शायद यहीं वजह हैं कि उ0प्र0 व उत्तराखण्ड में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद अब गोवा व मणिपुर में भी सम्भावनाऐं तलाशी जा रही है। यह ठीक है कि राजनीति के मैदान में अधिकतम् हासिल करने की जिद के साथ ही लम्बी पारी खेली जा सकती है और एक लम्बे अर्से तक सत्ता से बाहर रही भाजपा के लिऐ यह जरूरी भी है कि वर्तमान में जब सत्ता का ऊॅट सही करवट बैठ रहा है तो अधिकतम् तो हासिल करने की कोशिश की जाय लेकिन अपनी इन कोशिशों में भाजपा के कुछ लोग उन तमाम हदो को पार करते नजर आ रहे है जिन्हे राजनीति की भाषा में सामान्य शिष्टाचार की संज्ञा दी जाती है। कोई क्षेत्रीय दल या पहले-पहल सत्ता के नजदीक पहुॅचा राजनीति का नया खिलाड़ी इस तरह की हरकतें करे तो एक बार के लिऐ यह माना जा सकता है कि सत्ता की चाहत ने उसे इस तरह की जल्दबाजी के लिऐ मजबूर किया होगा लेकिन जब भाजपा जैसा मर्यादित व शिष्ट लोगो का समूह इस तरह की हरकतें करता दिखे तो यह मान लेना चाहिऐं कि खुद को साबित करने की जिद में भाजपा के कुछ नेता बहुत आगे निकल गये है। हो सकता है कि इस जल्दबाजी की एक बड़ी वजह आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर समुचे विपक्ष पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना भी हो और उत्तराखण्ड में काॅग्रेस के बागी नेताओं को भाजपा में शामिल कर चुनाव मैदान में उतारने पर मिली जोरदार सफलता के बाद भाजपा के बड़े नेताओ को लग रहा हो कि नमो-नमो के नारे के साथ उठाया गया हर गलत या सही कदम उन्हें सफलता के शीर्ष पर ले जाकर ही छोड़ेगा लेकिन भारत की राजनीति में एक लम्बी पारी खेलने के दावे के साथ मैदान में उतरी टीम मोदी को यह ध्यान रखना चाहिऐं कि जीत के जुनून में वह ऐसी मिसाल कायम न करे जो कि आने वाले वक्त में उनके लिऐ ही नजीर बन जाये।