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Friday, March 29, 2024

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थोड़ा सा कुछ तूफानी हो जाये

उत्तराखण्ड में चुनाव प्रचार ने पकड़ा जोर लेकिन टीम मोदी, हरीश रावत की घेराबन्दी में नाकाम।
मतदान के लिऐ शेष बचे इस अन्तिम सप्ताह में भाजपा ने अपने सिपाहसलार के रूप में अमित शाह व नितिन गडकरी को भी मैदान में झौंक दिया है तथा तयशुदा कार्यक्रमो के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चार सभाओ के माध्यम से हरीश रावत के तेजी से दौड़ते कदमों को बाॅधने का प्रयास किया जा रहा है। हाॅलाकि भाजपा के तमाम केन्द्रीय नेता व मोदी सरकार के मन्त्री उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों के दौरे कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास कर रहे है और किसी भी कीमत पर उत्तराखण्ड की सत्ता हासिल करने के लिऐ जूझ रहे संघ को समर्पित, कुछ चेहरे कार्यकर्ताओं पर पूरी नजर बनाये हुऐ है लेकिन हरीश रावत के बढ़ते कदम ठिठकने का नाम नहीं ले रहे है और अपने तूफानी अन्दाज में रोजाना आठ-दस सभाऐं व रोड शो कर रहे काॅग्रेस के यह वयोवद्ध नेता अपने जुनून के चलते प्रचार व जनता तक अपनी बात पहुॅचाने के मामले में मोदी सरकार के तमाम महारथियों को मात देते नजर आ रहे है। यह ठीक है कि इन्दिरा हृदयेश व किशोर उपाध्याय को उनके ही विधानसभा क्षेत्रो तक सीमित करने में सफल रहे भाजपाई धीरे-धीरे कर अपनी ताकत का इजहार कर रहे है और आसान जीत के साथ विधानसभा पहुॅचती दिख रही इन्दिरा ह्नदयेश पर मानसिक दबाव बढ़ाने के लिऐ पूर्व जिलाधिकारी नैनीताल एसपी सिह को भी हल्द्वानी बुलाकर भाजपा की प्राथमिक सदस्यता दी गयी है लेकिन मतदाता पर इन तमाम कारगुजारियेां का कोई फर्क पड़ता नही दिख रहा है और ऐसा मालुम होता है कि मानो वह अपना मन बना चुका है। हाॅलाकि चुनाव के संदर्भ में यह अतिविश्वास इन्दिरा हृदयेश पर भी भारी पड़ सकता है और मुस्लिम मतदाता को अपनी बहुत बड़ी ताकत मानकर चल रही काॅग्रेस के लिऐ हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र में सपा व बसपा को अनदेखा करना नुकसान देह हो सकता है लेकिन इस बार माहौल ही कुछ ऐसा है कि गफूर बस्ती विवाद के चलते मुसलिम मतदाताओं का खुला समर्थन इन्दिरा हृदयेश के साथ दिख रहा है और भाजपा के नये नये सदस्य बन रहे एसपी सिह जैसे लोग गफूर बस्ती को अवैध घोषित करते हुऐ इस आग में घी डालने का काम कर रहे है। गौरेतलब है कि जिलाधिकारी के रूप में अपने कार्यकाल में झुग्गी-झौपड़ी व अवैध कब्जे हटाने में एक हद तक कामयाब रहे एसपी सिंह का इन्दिरा हृदयेश की निजी सम्पत्ति पर बने होटल सौरभ की चाहरदिवारी को हटाने को लेकर कुछ विवाद हो गया था जिसपर सरकार में अपनी पहुॅच के चलते इन्दिरा हृदयेश पर एसपी सिह का स्थानातंरण करवाने का आरोप भी लगा था और इन्दिरा विरोधी कुछ राजनैतिक हस्तियों ने इस स्थानातंरण को राजनैतिक रूप देते हुऐ इसके विरोध में हल्द्वानी बन्द व चक्का जाम का आवहन भी किया था। ध्यान रहे कि अख्खड़ किस्म के नौकरशाह माने जाने वाले एसपी सिह जनता की आवाज उठाने वाले जमीन से जुड़े नेताओं व पत्रकारों को ‘झोलाछाप’ की संज्ञा देते रहे है और जिलाधिकारी नैनीताल के रूप में अपने छोटे किन्तु विवादित कार्यकाल के दौरान कुछ अवैध कब्जो की हटाकर कब्जेदारों को पक्की दुकाने दिलाने के अलावा उनकी ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नही है कि उनकी एक आवाज पर हल्द्वानी का मतदाता काॅग्रेस को चुनाव हराने निकल पड़े लेकिन एक तयशुदा रणनीति के तहत भाजपा के लोग हल्द्वानी के मुसलिम मतदाताओं को तीन जगह बाॅटना चाहते है और शायद इसीलिऐं भाजपा द्वारा इन क्षेत्रो में अपना प्रचार सीमित रखा गया है। यह माना जा सकता है कि पूर्व सपा नेता मतीन सिद्धिकी के काॅग्रेस में जाने से कुछ मुसलिम इन्दिरा हृदयेश से नाराज है और सपा व बसपा प्रत्याशियों द्वारा सीमित इलाके में किये जा रहे धुॅआधार प्रचार का भी कुछ असर दिखता है लेकिन यह असर ऐसा नही है जो इन्दिरा हृदयेश को मुख्य मुकाबले में आने से रोक सके और इन्दिरा के तेज बढ़ते कदमों को रोका जा सके। हाॅ इतना जरूर है कि भाजपा की यह चाल उसके प्रत्याशी को टक्कर पर खड़ा कर इन्दिरा हृदयेश के कदम बाॅधने में कामयाब दिखती है जबकि देहरादून की सहसपुर विधानसभा सीट में कुछ इसी तरह का इन्तजाम काॅग्रेस के बागी आर्येन्द्र शर्मा ने भी किया है जिससे किशोर उपाध्याय का दायरा सीमित होकर रह गया है लेकिन भाजपा को इस सारी जद्दोजहद का कोई बड़ा फायदा मिल पायेगा, यह कहना मुश्किल है क्योंकि इस तरह की तमाम कमियों को हरीश रावत अकेले पूरी कर रहे है और यह कहने में कोई हर्ज नही दिखता कि वह जिस क्षेत्र की ओर भी रूख करते है उस क्षेत्र के काॅग्रेस कार्यकर्ताओ के हौसले अपने आप बुलन्द हो जाते है। अगर भाजपा चाहती तो अपने प्रदेश स्तरीय दिग्गजों को यह कमान सौपकर काॅग्रेस के प्रत्याशियों की टेंशन की कुछ हद तक बड़ा सकती थी लेकिन चुनाव प्रचार के तमाम पहलुओं को अपने हाथ में रहकर टीम मोदी पता नही क्या साबित करना चाहती है। खैर भाजपा की रणनीति में कितना दम है यह जल्दी ही सामने आ जायेगा और चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद मतदान केन्द्रो तक जाने वाली जनता यह अन्दाजा जरूर देगी कि व्यापक जनमत किस दिशा की ओर जा रहा है।

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