हरीश रावत पर सीधे हमलावर होने के लोभ पर संवरण नही कर पाये प्रधानमंत्री
उत्तराखंड में अन्तिम दौर पर जा पहुंचे चुनावी रण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सीधे तौर पर हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तथा हर नेता से जुड़े भ्रष्टाचार की कुण्डली अपनी जेब में होने की बात करने वाले नरेन्द्र मोदी अपने तूफानी चुनावी दौरों के दौरान जनता को यह अहसास कराना भी नही भूले कि भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा गठित इस राज्य के अपने निर्माण के सत्रहवें वर्ष में प्रवेश करने के बाद इसकी अवस्थापना से जुड़े तमाम खर्चो को पूरा करने के लिऐ केन्द्रीय सत्ता को भरोसे में लेना तथा प्रदेश में भी केन्द्रीय सत्ता के अनुरूप विचारधारा वाली सरकार बनाना जरूरी है। मोदी के इस संदेश को इस पहाड़ी प्रदेश की जनता सलाह मानती है या फिर धमकी, इस बात का अंदाजा तो चुनाव नतीजे सामने आने पर ही आयेगा लेकिन यह तय है कि अपने इस एक वाक्य से मोदी ने न सिर्फ उत्तराखंड आंदोलन के लिऐ किये गये एक लंबे जनसंघर्ष को नजरअंदाज करते हुऐ भाजपा को राज्य गठन का श्रेय दिया बल्कि प्रदेश की जनता को खुलेआम यह धमकी भी दी कि अगर वह हरीश रावत के नेतृत्व पर दोबारा विश्वास जताती है तो प्रदेश में छाया दिख रहा आर्थिक संकट बरकरार रहेगा लेकिन अपने सम्बोधनों के दौरान वह मतदाता को यह भरोसा दिलाने में नाकामयाब रहे कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में वह केन्द्र सरकार द्वारा आंबटित धनराशि को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने से रोंकेगे। भाजपा में साफ दिख रही भ्रष्टाचारी नेताओं की भीड़ को देखते हुऐ यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि चोरों के परोकार बनकर आये हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी मंचों से कितनी ही लाग-लपेट करने की कोशिश क्यों न की हो पर वह इस तोहमत से बच नही सकते कि कल तक उनकी विचारधारा का अनुसरण करने वाले लोगो ने जिन लोगों पर गले फाड़-फाड़ कर भ्रष्टाचार के आरोंप लगाये थे आज वह उन्ही की चुनावी सिफारिश लेेकर चुनाव मैदान में है और यह मानने का कोई कारण नही है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की स्थापित में सत्ता की कमान इन तमाम लोगों के हाथों में नही होगी जिन्हें भाजपा ने विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से प्रत्याशी बनाया है। इन परिस्थितियों में केन्द्र सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी तरह की आर्थिक मदद या अनुदान राज्य की जनता के किस काम आ सकेगा, कहा नही जा सकता। वर्तमान में चुनावी मंचों से चिल्ला-चिल्ला कर हरीश रावत पर भ्रष्टाचार के आरोंप लगाने वाले भाजपा के लोग या स्वंय प्रधानमंत्री अभी तक जनता के बीच यह तथ्य नही प्रस्तुत कर पाये है कि आखिर किन मामलों में उसे भ्रष्टाचार की बू आती है लेकिन भाजपा के बेनर तले चुनाव लड़ रहे नेताओं पर लग रहे आरोंपो का इनके पास कोई जवाब नही है और न ही राज्य के विकास को लेकर कोई स्पष्ट सा खाका भाजपा द्वारा जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है, तो क्या यह मान लिया जाय कि भाजपा का अन्तिम लक्ष्य सिर्फ सत्ता प्राप्त करना है और वह इसके लिऐ किसी भी हद तक जाने को तैयार है। यह ठीक है कि चुनावी माहौल में अपनी कमियों को छुपाते हुऐ आधा सच जनता के सामने प्रस्तुत करना एक कला है और हमारे प्रधानमंत्री को इस कलाकारी में पूरी महारत हासिल है लेकिन इस देश का प्रधानमंत्री होने के नाते मोदी को यह भी समझना चाहिऐं कि इस तरह की कलाकारी के सहारे एक-दो चुनाव तो जीते जा सकते है लेकिन यह सब कुछ ज्यादा समय तक नही चल सकता और उत्तराखंड के मामले में तो बिल्कुल नही क्योंकि इस प्रदेश के लोगों ने प्रथक राज्य की लंबी लड़ाई से कुछ और हासिल किया हो या न किया हो पर उन्हें अपने स्वाभिमान की रक्षा करना आता है तथा इस चुनावी रण में दोनों ओर सजी सेनाओं पर एक नजर मार हम इस बात का अहसास आसानी से कर सकते है कि आज हरीश रावत सिर्फ एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार नही बल्कि पहाड़ी अस्मिता के प्रतीक बन चुके है और अपने इन ढाई-तीन वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने हरेला, घी-संक्राद और झुमैलों जैसी तमाम लोक परम्पराओं व लोकपर्वो को महत्व देकर आम पहाड़ी के मन को छुआ जरूर है। तरूण होते इस उत्तराखंड को सिर्फ आश्वासनों या मनगणन्त किस्से कहानियों की नही बल्कि एक एैसे योद्धा की जरूरत है जो पहाड़ी अस्मिता की लड़ाई लड़ने के लिऐ हर मोर्चे पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके औार पिछले तीन वर्षो में प्रदेश के लगभग हर कोने में लगातार दिखने वाली हरीश रावत की उपस्थिति यह अहसास कराने को काफी है कि वह उत्तराखंड राज्य आंदोलन के बाद बिना किसी नीति व सिद्धान्त के राज्य गठित कर देने के चलते पीछे छूट गयी उत्तराखंड राज्य निर्माण की लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहते है। खैर फैसला अब जनता के हाथो में है और जनता ने ही तय करना है कि वह राज्य को किस ओर ले जाना चाहती है।
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