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Wednesday, April 24, 2024

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ताजपोशी के बाद

एक नए आभामंडल के साथ प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मुकाबले को तैयार राहुल
राहुल अब कांग्रेस की सर्वाधिकार सम्पन्न व सर्वोच्च ताकत है और मजे की बात यह है कि उन्हें पप्पू साबित कर चुके मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी अब उन्हें गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। हालांकि भाजपा के कुछ लोगों ने राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी की प्रक्रिया पर सवाल उठाने की कोशिश की थी और राहुल के चयन की पूरी प्रक्रिया को निशाने पर लेते हुए इसे परिवारवाद या फिर संगठन पर एक ही कुनबे के कब्जे की तरह प्रस्तुत किया गया था लेकिन कांग्रेस के अधिकृत सदस्यों या पदाधिकारियों को इस सबसे कोई परेशानी नहीं दिखती या फिर यह भी कहा जा सकता है कि इस प्रकार की प्रक्रिया से नाराज कांग्रेसियों के मन में संगठन का खौफ इस कदर बैठा हुआ है कि वह इसके विरूद्ध आवाज उठाने का साहस नहीं करते और यह नियम घोषित या अघोषित रूप से सभी दलों पर लागू है बस फर्क इतना है कि राहुल के कांग्रेस का नेतृत्व संभालने के बाद उनका इतिहास चार-पांच पीढ़ी पुराना हो गया है जबकि लोकतंत्र के नये राजघराने शनैः-शनैः इस दिशा में आगे ही बढ़ रहे हैं। एक राजनैतिक दल के रूप में कांग्रेस का अपना एक अलग लोकतांत्रिक इतिहास रहा है और गांधी परिवार कांग्रेस में इस कदर समाहित है कि एक सामान्य कांग्रेसी को भी लगता है कि कांग्रेस को राजनैतिक रूप से एकजुट रखने के लिए गांधी परिवार के किसी न किसी सदस्य को आगे किया जाना जरूरी है। शायद यही वजह है कि आज एक लंबे सत्ता संघर्ष के बावजूद कांग्रेस के समक्ष राहुल के अलावा और कोई विकल्प नहीं है तथा हर चुनावी हार के बाद लंबे अज्ञातवास (आत्मचिंतन) के लिए जाने वाले एक नेता ने अब पूरी तरह कांग्रेस की कमान संभाल ली है लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल राजनैतिक धूर्तता के इस खेल में लंबे समय तक टिक पाएंगे और बिना किसी आभामंडल के नित नयी चुनौतियों को स्वीकार करना उनके लिए आसान होगा। हम देख रहे हैं कि कांग्रेस के पुराने व खांटी नेता एक-एक कर चूकते जा रहे हैं और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बड़ी ही चालाकी के साथ कांग्रेस के चुनाव जिताऊ उम्मीदवारों का भगवाकरण कर उसके अस्तित्व पर ही प्रहार करने का काम शुरू कर दिया है लेकिन इधर कुछ युवा नेताओं व कांग्रेस के प्रति वफादार चेहरों से उम्मीद की जा सकती है और राहुल भी पूरी तरह फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं जिस कारण कई मोर्चों पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की परेशानी भी बढ़ी है। हालांकि यह दावा नहीं किया जा सकता कि राहुल की इस ताजपोशी के बाद कांग्रेस गुजरात में चुनाव जीत रही है या फिर सड़कों पर दिख रहा कांग्रेस के प्रति समर्थन व विश्वास ईवीएम के जरिए चुनावों को प्रभावित करने में कामयाब भी होगा लेकिन एक युवा नेता के रूप में राहुल, हार्दिक पटेल, अखिलेश यादव व अन्य तमाम क्षेत्रीय दलों के छोटे-बड़े नेताओं को साथ लेकर चलने में जिस हद तक कामयाब दिखते हैं उससे यह साफ है कि भविष्य में वह चुप बैठने वाले नहीं हैं। यह माना कि गुजरात चुनावों के दौरान राहुल का एकाएक ही मंदिर-मंदिर जाना या फिर उनके हिन्दुत्व को साबित करने के लिए शुरू की गयी जनेऊ चर्चा वाकई में भाजपा की रणनैतिक जीत है लेकिन मिल रहे संकेतों व कांग्रेस की सक्रियता को देखकर ऐसा लगता है कि मानो देश की राजनीति का यह सबसे पुराना दल एक बार फिर अपने पुराने वोटबैंक को एकजुट करने के लिए मचल रहा है और अगर ऐसा है तो यह भाजपा की राजनीति व सत्ता पर कब्जेदारी को एक चुनौती है। यह माना की राहुल जमीनी राजनीति से उठकर आगे नहीं आए हैं और न ही उनके पास आंदोलनों की राजनीति का कोई अनुभव है लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि वह एक ऐसे राजनैतिक दल का नेतृत्व कर रहे हैं जो कि न सिर्फ देश और दुनिया का जाना पहचाना नाम है बल्कि राजनीति को संरक्षण देने वाली पूंजीवादी मानसिकता के बीच भी कांग्रेस उससे ज्यादा लोकप्रिय है जिस लोकप्रियता को हासिल करने के लिए मोदी व शाह के नेतृत्व में समग्र भाजपा प्रयासरत् है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय लोकतंत्र का चेहरा जनपक्षीय होने के बावजूद यहां की आर्थिक नीतियों के निर्धारण व व्यापक जनहित से जुड़ी तमाम योजनाओं के संचालन तक में पूंजीपति घरानों व उद्योगपतियों का अहम् योगदान रहता है और समय-समय पर होने वाले तमाम तरह के चुनावों व अन्य लोकतांत्रिक गतिविधियों में किसी भी राजनैतिक दल की भागीदारी के लिए यह तमाम पूंजीपति घराने व उद्योगपति दिल खोलकर चंदा देते हैं। अगर पिछले दिनों घटित घटनाक्रम पर गौर करें तो हम पाते हैं कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले व उसके बाद भी उनके आभामंडल को चमकाने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं और देश के तमाम पूंजीपति समूहों ने इसके लिए बेइन्तहा पैसा बहाया है जिसके बदले में इन समूहों व घरानों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं व अपना व्यवसाय फैलाने का मौका दिया गया है लेकिन इधर देखने में आ रहा है कि कुछ औद्योगिक समूह मोदी सरकार ने नाराज नजर आ रहे हैं और जनपक्षीय राजनीति में मजबूत विपक्ष की अनुपस्थिति के चलते मोदी सरकार कभी-कभी तानाशाह की तरह व्यवहार करने लगी है जिसके चलते जनक्रांति या जनविद्रोह का खतरा भी नजर आने लगा है। लिहाजा व्यापारी समुदाय के एक हिस्से ने एक बार फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया है और यह उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ महिनों में राहुल गांधी एक बचकाने नेता नहीं रहेंगे बल्कि मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा उन्हें लोकप्रिय करार देते हुए प्रधानमंत्री पद का दावेदार और मोदी का प्रतिद्वंदी साबित करने का पूरा प्रयास किया जाएगा। यह माना कि राहुल के लिए आगे की राह इतनी आसान भी नहीं है कि उनको एकाएक ही ले जाकर प्रधानमंत्री के मुकाबले का नेता बना दिया जाय और उनको सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने के लिए तमाम क्षेत्रीय व विपक्षी दल एक झंडे के नीचे आकर खड़े हो जाएं लेकिन इसके अलावा कोई और विकल्प भी नहीं है क्योंकि क्षेत्रीय राजनीति में स्थापित तमाम क्षत्रप या तो अपने राजनैतिक खात्मे की कगार पर हैं या फिर एक लंबी जद्दोजहद के बावजूद वह अपना राजनैतिक कद इतना बड़ा नहीं कर पाए हैं कि उन्हें आगे करते हुए विपक्ष की राजनीति का धु्रवीकरण किया जा सके। हालांकि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल इस दिशा में प्रयासरत् हैं और इन दिनों खमोशी के साथ हो रही आम आदमी पार्टी के कार्यक्षेत्र में विस्तार की कोशिश यह इशारा कर रही है कि केजरीवाल लंबी लड़ाई के मूड में हैं लेकिन पूरी तरह व्यवसायिक हो चुकी राजनीति के इस दौर में सिर्फ कार्यकर्ताओं के भरोसे लक्ष्य हासिल करने की सोच रखना भी बेमानी है और मौजूदा हालात यह इशारा कर रहे हैं कि मोदी के विरूद्ध एक सशक्त पक्ष रखने के लिए या फिर सरकार पर पूंजीपति वर्ग का दबाव बनाए रखने के लिए कांग्रेस व उसके नेता राहुल गांधी ही एक सशक्त पक्ष हैं। इसलिए राहुल गांधी संगठन के शीर्ष पदों को संभालने के बाद देश की राजनीति व माहौल में कुछ ऐसे बदलाव अवश्यम्भावी रूप से लाएंगे जिससे उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ेगा और जनता को यह अहसास होगा कि सरकार बनाने व चलाने के इस खेल में राहुल ही मोदी के मुकाबले खड़े हो सकते हैं। लिहाजा यह मानकर चलना चाहिए कि राहुल की ताजपोशी के साथ ही साथ कांग्रेस में संगठनात्मक स्तर पर भी बड़े बदलाव किए जाएंगे और संगठन का पक्ष रखने व जनता के बीच जाने के लिए सक्रिय चेहरों को आगे किए जाएगा।

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