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Thursday, April 25, 2024

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चैंकाने वाले नतीजों के साथ

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज हुई भाजपा
चैंकाने वाले चुनाव नतीजों के साथ मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने एक बार फिर यह साबित किया कि वह मतदाता की नब्ज पहचानते है और उन्हें हारी हुई बाजी जीतने का हुनर अच्छी तरह आता है। हांलाकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सिर्फ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में ही बहुमत मिला है और देश का प्रमुख विपक्षी दल कही जाने वाली कांग्रेस की स्थिति पंजाब, गोवा व मणिपुर में बुरी नही कही जा सकती लेकिन अगर इसे आगामी लोकसभा चुनावों का आगाज माना जाय तो हम यह कह सकते है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिला भारी बहुमत यह साबित करता है कि मोदी नाम की सुनामी का असर अभी देश के तमाम हिस्सों में साफ दिख रहा है और चुनाव के नतीजे यह भी साबित करते है कि नोटबंदी के सरकारी फैसले को जनता ने सकारात्मक रूप से लिया है। यह ठीक है कि इन नतीजों के बाद भाजपा को राज्य सभा में कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं होने वाला और न ही कांग्रे्रस को मिली यह करारी हार उसके लिये अन्तिम सबक मानी जा सकती है लेकिन जिस तरह के चुनावी नतीजे सामने आये है और उत्तर प्र्रदेश जैसे राज्य में जनता ने जातीय समीकरणों को तोड़ते हुऐ मतदान किया है उससे यह तो स्पष्ट है कि आगे आने वाले दिनों में भाजपा और ज्यादा मजबूती के साथ अपने फैसले लागू करने को स्वतंत्र होगी। गौरेतलब है कि इन पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा के पास खोने के लिये कुछ खास नही था और कुछ भी समय पूर्व के भाजपा नेताओं के बयानों पर गौर करें तो यह भी स्पष्ट दिखता है कि भाजपा को उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में इतनी बड़ी उम्मीद भी नही थी लेकिन अब यह माना जा रहा है कि अगर पंजाब में भी भाजपा ने गठबंधन धर्म को तोड़ते हुऐ अकेले चुनाव लड़ा होता तो शायद वहां भी स्थितियों में कुछ सुधार देखने को मिलता। यह ठीक है कि जनता के इस फैसले के बाद भाजपा के नेताओं की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गयी है तथा आम मतदाता की मोदी व उनकी सरकार से अपेक्षाऐं भी बढ़ी है लेकिन यह एक बड़ा सवाल यह है कि क्या उत्तर प्र्रदेश व उत्तराखंड में बनने वाली जनहितकारी सरकारें उन तमाम वादों को पूरा कर पायेंगी, जो कि टीम मोदी व भाजपा के नेताओं ने जनता के बीच किये है। यह तथ्य किसी से छुपा नही कि यूपी व उत्तराखंड में ठीक केन्द्र की तर्ज पर मिला स्पष्ट बहुमत भाजपा को इन दोनों ही राज्यों में अगले पांच वर्षों तक निष्कंटक राज सकने का मार्ग प्रशस्त करता है तथा इन दोनों ही राज्यों का कमजोर विपक्ष चाह कर भी सरकारी काम-काज में अंडगा डालने की स्थिति में नही दिखता। इन हालातों में आगे आने वाली सरकारों का फर्ज बनता है कि वह अगले दो वर्षो में उन तमाम विवादित मुद्दो का निपटारा करें जिन्हें कि राज्य व केन्द्र सरकारो के मतभेदों या फिर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार के आपसी मतभेदों की चलते निपटाया नही जा सका था। उत्तराखंड जैसे नवगठित राज्य के संदर्भ में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्यांेकि मंच से ‘अटल के नेतृत्व में गठित उत्तराखंड राज्य को मोदी के नेतृत्व में संवारने‘ का दावा करने वाली भाजपा सरकार न सिर्फ अब प्रदेश की सत्ता में आ चुकी है बल्कि भाजपा के तमाम क्षेत्रीय दिग्गजों ने उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में सत्ता पक्ष व विपक्ष में रहकर यह भी महसूस कर रखा है कि राज्य के विकास कार्यक्रम में कहां-कहां और क्या खामियां है तथा पूर्ववर्ती सरकारों से क्या-क्या गलतियां हुई है। लोकतंत्र के इतिहास में यह एक बड़ा अवसर है जब देश की जनता ने अपने प्रधानमंत्री के नारों पर पूर्ण विश्वास करते हुऐ उन्हें यह मौका दिया है कि वह देश के एक बड़े हिस्से में अपनी मनमर्जी से सरकार का गठन कर व्यवस्थाओं  को चुस्त व दुरूस्त बनाये और इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि सतत् विकास के वादे के साथ सत्ता में आयी भाजपा को इन स्थितियों तक पहुंचाने के लिये संघ के कार्यकर्ताओं ने भी बहुत मेहनत की है। इसलिऐं अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उ.प्र. की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा राममंदिर व सतत् हिन्दुत्व के नारे पर किस तरह से अमल करती है और कांग्रेस, सपा या बसपा के शासनकाल में स्पष्ट दिखने वाली मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों में किस तरह का बदलाव देखने को मिलता है। पांच राज्यों के चुनावों के दौरान उ.प्र. व उत्तराखंड में भाजपा को मिली भारी जीत यह साबित करती है कि इस बार भाजपा को हर तबके, जाति व सम्प्रदाय का वोट मिला है और अगर मुस्लिम मतो के प्रतिशत् को नगण्य मानते हुऐ यह मान भी लिया जाय कि कुछ मुस्लिम मतदाताओं के धार्मिक भेदभाव से उपर उठकर तीन तलाक जैसे मुद्दों पर भाजपा को वोट दिया होगा, तो भी यह तथ्य स्वंय में महत्वपूर्ण है कि जाति व वर्ण व्यवस्था में बंटे भारतीय समाज को एकजुट करते हुऐ क्षेत्रीय विचारधारा को मृतपाय करने की यह चाल आगे भी कामयाब होगी कि नहीं। पंजाब में सरकार बनाने के दावे के साथ ही साथ गोवा व मणिपुर में सबसे बड़ा राजनैतिक दल साबित होने के बावजूद कांग्रेस इन चुनाव के बाद खुद को बहुत ज्यादा कमजोर महसूस करेगी क्योंकि उसे उत्तराखंड में अपनी सरकार का नेतृत्व कर रहे हरीश रावत पर बहुत भरोसा था लेकिन हरीश रावत जिस तरीके से दो-दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के बावजूद खुद अपना ही चुनाव हार गये उससे यह स्पष्ट है कि उनसे जनता की नब्ज पहचानने में कोई बड़ी गलती हुई है और उनकी इस गलती के बाद अब यह तथ्य विचारणीय होगा कि कांग्रेस अब उनपर कितना भरोसा करती है या फिर बुरी तरह लड़खड़ा चुकी कांगे्रस आगामी लोकसभा चुनावों से पहले एक बार फिर संभलने की स्थिति में आ सकती है या नहीं। इस सबके अलावा चुनावों से जुड़ी एक बड़ी खबर यह भी कि जन अधिकारों के लिये लंबी लड़ने वाली शर्मिला इरोम लोकतंत्र की प्राथमिक पाठशाला में ही जनता द्वारा नकार दी गयी और अपनी इस हार से दुखी इरोम ने सक्रिय राजनीति से सन्यास का ऐलान कर दिया।

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