चिन्ताओं के बावजूद | Jokhim Samachar Network

Thursday, March 28, 2024

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चिन्ताओं के बावजूद

देश के प्रधानमंत्री द्वारा चुनावी मंचो से उठाये गये गम्भीर प्रश्नो पर कितना सक्रिय होगी प्रसाशनिक व्यवस्था।
जीत की खुशी से सराबोर भाजपा के लिऐ यह राहत की खबर हो सकती है कि मोदी का जादू अभी न सिर्फ बना हुआ है बल्कि यह युवा मतदाता के सर चढ़कर बोल रहा है लेकिन अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कानून व्यवस्था को लेकर जो सवाल उठाये है वह स्वयं में गम्भीर है और अब उत्तरप्रदेश व उत्तराखण्ड की सत्ता पर पूर्ण कब्जेदारी के बाद यह महत्वपूर्ण है कि मोदी व अमित शाह की जोड़ी के दिशा निर्देश में चल रही भाजपा के नेतृत्व वाली तमाम राज्यों की सरकारें इन तमाम विषयों पर किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाती है। यह ठीक है कि चुनाव नतींजो के भाजपा के पक्ष में आने के बाद किसी भी तरह के सवाल उठना बेमानी है और मोदी व अमित शाह की इस जोड़ी ने तो हर बार की तरह इस बार भी साबित किया है कि उनकी आक्रामक तरीके से प्रचार करते हुऐ प्रतिद्वन्दी पर हावी होने की रणनीति तथा स्थानीय समीकरणों की समझ, खुद में ही लाजबाव है लेकिन मोदी के भाषणो पर विश्वास कर भाजपा के पक्ष में एकजुटता के साथ मतदान करने वाला भारत का सामान्य मतदाता यह जरूर जानना चाहेगा कि देश के विभिन्न हिस्सों में उसकी सुरक्षा पुख्ता करने के लिऐ सरकारी स्तर पर किस तरह के प्रयास किये जा रहेे है। विशिष्ट श्रेणी की वीआईपी सुरक्षा से युक्त देश के प्रधानमंत्री व अन्य नेताओं समेत तमाम अन्य व्यक्तित्वों की सुरक्षा व्यवस्था पर होने वाले खर्च का जब भी आॅकलन होता है तो यह तथ्य हमेशा दोहराया जाता है कि भारत जैसे गरीब देश में आम आदमी की कीमत पर होने वाली यह तमाम व्यवस्थाऐं हमारे लोकतन्त्र पर एक कलंक की तरह है लेकिन ऐसे अवसरो पर जन-गण-मन पर हावी लोकतन्त्र के ठेकेदार जन सामान्य को यह आश्वासन देने से नही चूकते कि उनकी सुरक्षा ही आम नागरिक की सुरक्षा है या फिर आम आदमी के हको को लेकर की जा रही जद्दोजहद के चलते ही उनकी जान को खतरा है। हालातों के मद्देनजर प्रधानमंत्री द्वारा उठाये गये सवाल महत्वपूर्ण है और यह साबित भी करते है कि इस वक्त जन सामान्य के हितो को लेकर चिन्तित एक जन-नेता राष्ट्र की सत्ता पर काबिज है लेकिन सवाल यह है कि अब आगे अस्तित्व में आने वाली सरकारें इस समस्या का समाधान कैसे करेंगी और सिर्फ मुआवजा बाॅटने या फिर सांत्वना देने तक सीमित रहने वाले नेताओ व सरकारी बाबूओं की प्रत्येक घटना या दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदारी कैसे नीयत की जा सकेंगी। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि महिलाओं की सुरक्षा एवं उनपर होने वाले हिंसात्मक हमलों को लेकर हमारे देश की पुलिस सजग नही है और महिला उत्पीड़न या जोर-जबरदस्ती के तमाम मामलो में महिलाओं को इज्जत व सामाजिक मान-प्रतिष्ठा का हवाला देकर चुप रहने की ही सलाह दी जाती है लेकिन विभिन्न सड़क दुघर्टनाओं, हादसों या आंतकी घटनाक्रों को लेकर भी हम सिर्फ मुआवजा बाॅटने व अपने सिस्टम की खामियाॅ छुपाने के लिऐ आॅकड़ो की सीमित अंदाज में प्रदर्शित करने तक ही सीमित है और सरकार द्वारा विभिन्न मदों में वसूले जाने वाले तमाम तरह के करो के बावजूद कोई भी सरकार अपने नागरिको के लिऐ प्रर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था व दुर्घटना रहित माहौल बनाने की दिशा में प्रयास करती हुई नही दिखाई देती। कितना आश्यर्चजनक है कि देश की राजनधानी दिल्ली में घटित जघन्य निर्भया काण्ड के बावजूद हम व हमारें तथाकथित जनवादी संगठन न सिर्फ मोमबत्तियाॅ जलाने तक सीमित है बल्कि महिलाओं की सुरक्षा के लिऐ बनाये गये तमाम कानूनो पर भी ठीक तरीके से अमल नही किया जाता। ठीक इसी तरह हमारी टूटी-फूटी सड़के व क्षतिग्रस्त राजमार्ग सड़क सुरक्षा को लेकर हमारी चिन्ताओं की पेाल खोलते है और लगभग हर रेल दुघर्टना के बाद हम सुरक्षा मानको को कड़ा करने या फिर दुघर्टना के कारणों की तलाश करने का दावा करते हुए अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है। यह ठीक है कि सरकारी तन्त्र या फिर जन सुरक्षा के लिऐ जिम्मेदार सरकारी अधिकारी के पास ऐसी कोई जादू की छड़ी नही है कि वह एक ही झटके में उन तमाम कारणों की तलाश कर सके जो इस तरह की तमाम दुघर्टनाओं के लिऐ जिम्मेदार है और न ही यह सम्भव है कि कोई भी व्यवस्था अपने प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुऐ इतने सुरक्षाकर्मी नियुक्त कर सके कि देश के हर नागरिक को प्रर्याप्त सुरक्षा दी जा सके लेकिन इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि वीआईपी सुरक्षा के मामले में सजग व सक्रिय दिखाई देने वाला सरकारी अमला जन सामान्य की सुरक्षा को लेकर उदासीन नजर आता है और अधिकांश मामलों में यह देखा जाता है कि जन सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार हमारी सुरक्षा ऐजेन्सियाॅ आम आदमी पर ही सवाल खड़े करती नजर आती है। इन हालातों में देश के प्रधानमंत्री को यह जरूर बताना चाहिऐं कि चुनावी रंगत समाप्त हो जाने के बाद वह किन उपायों व तरीकों से आम आदमी को एक सुरक्षित जीवन देने की गारन्टी दे सकते है और उन्होने उ0प्र0 जैसे बड़े राज्यों की शासन व्यवस्था में वह कौन सी खामियाॅ इंगित की है जिनमें सुधार कर आम नागरिक को एक सुरक्षित जीवन की गारन्टी दी सकती है। यह ठीक है कि चुनावी मौसम में व्यापक प्रचार-प्रसार के लिऐ जनता के मर्म को छूने वाले मुद्दे उठाना विपक्ष का फर्ज होता है और सत्ता हासिल करने के बाद यह तमाम विषय स्वंय में गौण हो जाते है लेकिन जब बात आम आमदी के प्राणो के संकट की हो और देश का प्रधानमंत्री स्वयं इस तरह के प्रश्नों को उठाये तो तथ्यों को ज्यादा लम्बे समय तक टाला जाना न्यायोचित नही कहा जा सकता। उत्तर-प्रदेश व उत्तराखण्ड की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा के नेताओं पर यह जिम्मेदारी आयद होती है कि वह उन तमाम कारणों की समीक्षा करें जिनके चलते एक सामान्य परिवार की महिला का देर सांय सड़को पर निकलना सुरक्षित नही समझा जाता या फिर सुबह सवेरे अपने सामान्य कामकाज व रोजी रोटी की तलाश में निकलने वाला एक आम आदमी शाम को अपनी सुरक्षित घर वापसी को लेकर अश्वस्त नही दिखता। हो सकता है कि इन दो राज्यों की बिगड़ी व्यवस्थाओं को ढर्रे पर लाने या फिर कानून व्यवस्था को सुधारने के लिऐ इन राज्यों में गठित होने वाली नयी सरकारों को कुछ वक्त की दरकार हो और एक लम्बे इन्तजार के बाद सत्ता पर कब्जेदारी के लिऐ बेकरार नेताओं को यह लगता हो कि उनके पास इस तरह की तमाम छोटी-छोटी घोषणाओं को पूरा करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कई और कार्य है लेकिन देश का प्रधानमंत्री होने व इस पद पर तीन वर्ष की अवधि को पूरी सफलता के साथ पूरा करने के बाद मोदी इस जिम्मेदारी से बच नही सकते और उन्होने मय आॅकड़ो के साथ जनता की अदालत में उपस्थित हो तर्को के आधार पर मतदाता को यह जरूर बताना चाहिऐं कि पिछले तीन वर्षो में केन्द्र सरकार व भाजपा शसित राज्यों ने इस दिशा में क्या-क्या प्रयास किये है। किसी भी घटनाक्रम के घटित होने अथवा अपराधी के खुलकर सामनेे आने से पहले अपराधी की मानसिकता को भाॅप लेना आसान काम नही है और न ही हमारे देश का कानून बिना किसी जुर्म के सम्भावित अपराधी या अपराधी मानसिकता को लम्बे समय तक जेल के सीकचों के पीछे रखने में सक्षम है लेकिन इसका मतलब यह भी तो नही है कि अपराध घटित होने की डर से महिलाऐं और बच्चे अपने घरों से ही निकलना बन्द कर दे। इसलिऐं प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक मंच से व्यक्त की गयी चिन्ता का प्रर्याप्त समाधान खोजा जाना चाहिऐं और यह भी तय किया जाना जरूरी है कि सरकारी नियन्त्रणाधीन माने जाने वाली ऐजेन्सियों की गलतियों के चलते घटित होने वाली दुघर्टनाओं की जिम्मेदारी किसकी होगी। मानवीय जीवन बहुमूल्य है और इसकी भरपायी किसी भी तरीके से सम्भव नही है। इसलिऐं हर आपराधिक घटनाक्रम या फिर मानव जनित दुघर्टना की स्थिति में मुआवजे की घोषणा के प्रावधान के स्थान पर घटना अथवा दुघर्टना के कारणों की तलाश कर दोषी के दण्ड देने तथा घटनाक्रम की पुर्नावृत्ति रोकने की परम्परा को विकसित किया जाना जरूरी है। अगर ऐसा नही होता तो यह माना जायेगा कि पाॅच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत हासिल करने के बावजूद भाजपा सिर्फ शिगूफो की राजनीति करना चाहती हैं और चुनावी मंचो से देश के प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त की गयी गम्भीर चिन्ताओं के बावजूद इस दिशा में कोई प्रयास इसलिऐं नही किया जा रहा क्योंकि अन्य राजनैतिक दलो की तरह भाजपा भी चुनावी मुद्दो को आगामी समय के लिऐ सम्भालकर रखना चाहती है।

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