समकालीन नेताओं के मुकाबले ज्यादा चर्चित व लोकप्रिय माने जा सकते हैं उत्तराखंड व उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी
वयोवृद्ध राजनेता एवं उत्तराखंड व उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पं. नारायण दत्त तिवारी वर्तमान में राजनीतिक रूप से सक्रिय न होने के बावजूद अपने स्वास्थ्य को लेकर चर्चाओं में हैं और ऐसा लगता है कि उनकी इस दारूण दशा को बार-बार जनता के बीच लाकर किसी राजनैतिक लाभ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि दो-दो सूबों के मुख्यमंत्री व केन्द्र सरकार के मंत्री के रूप में उनका उत्तराखंड के एक क्षेत्र विशेष के विकास में बहुत योगदान रहा और उनकी राजनैतिक नजदीकी का लाभ उठाकर कई लोग विधायक, सांसद व मंत्री बनने में भी सफल रहे लेकिन इधर जीवन की चैथी अवस्था में हुई राजनैतिक छिछालेदार के बाद वह अब इस लायक भी नहीं रहे कि अपने जैविक पुत्र को राजनैतिक रूप से प्रतिष्ठित कर सकें। हालांकि यह तयशुदा तरीके से नहीं कहा जा सकता कि अपने पुत्र रोहित शेखर तिवारी को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपने की उनकी दिली इच्छा है भी या नहीं और न ही यह दावा किया जा सकता है कि रोहित शेखर ही उनका राजनैतिक वारिस होगा लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षाें में रोहित शेखर को राजनैतिक मजबूती देने के चक्कर में तिवारी जी की जो गत खराब हुई है उसे देखकर दिल सहम-सहम सा जाता है। जिन लोगों ने तिवारी की राजनैतिक युवावस्था व सक्रियता के दौर को नजदीकी से देखा है वह लोग जब पं. नारायण दत्त तिवारी की राजनैतिक छिछालेदार होती देखते हैं या फिर उन्हें जब तिवारी की बेबसी वाली हालत का अंदाज होता है तो उनका दिल सहम सा जाता है लेकिन वह कर क्या सकते हैं क्योंकि उन्हें एक कानूनन पुत्र व पिता के बीच चल रही हक-हकूक की लड़ाई व अन्य कानूनी दांवपेच के बीच बोलने का अधिकार नहीं है। लिहाजा लोग चुप हैं या फिर बस दूर से ही अपने नेता को निहार रहे हैं। उन्हें यह दुख तो है कि जिस नेता ने उनके लिए इतना कुछ किया उसके लिए वह कुछ नहीं कर पा रहे और न वह इस हालत में हैं कि उनकी संवेदनाएं उस तक पहुंच सके लेकिन मौन उनकी मजबूरी है क्योंकि अपने नेता के दुख पर रोना-कलपना या फिर उसके समर्थन में एकत्र हो नारेबाजी करना उनकी कमजोरी मान लिया जाना है और इस कमजोरी पर गिद्ध दृष्टि लगाये फायदा उठाने के लिए नेताओं की एक पूरी फौज समय का इंतजार कर रही है। यह माना कि जीवन की इस चैथी अवस्था और अस्पताल में चल रहे जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष वाले इस दौर से ठीक पहले ईश्वर ने उन्हें एक पत्नी व पुत्र के रूप में ऐसी नेमत बक्शी है जो हर पल उनकी खिदमत को तैनात दिखती है लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि तिवारी ने इस नेमत की पूरी कीमत अदा की है और राजनैतिक रूप से भारी भरकम व्यक्तित्व होने के बावजूद भी उनकी जो छिछालेदार वर्तमान में हुई है, उसका कोई जवाब नहीं है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि राजनैतिक षड्यंत्रों के तहत लगे आरोपों के बाद हैदराबाद के राजभवन से निष्कासित होकर निर्वासित जीवन जी रहे पं. नारायण दत्त तिवारी जबसे रोहित शेखर से कानूनी लड़ाई हारे तो वह राजनैतिक अछूत मान लिए गए लेकिन इस दौर में भी उनका राजनैतिक आशीर्वाद चाहने वालों की कोई कमी नहीं रही और उनके आवास में राजनैतिक आवागमन चलता रहा। उनके इन्हीं राजनैतिक सम्पर्कों का फायदा उठाकर रोहित शेखर ने न सिर्फ उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार पर दबाव बनाना चाहा बल्कि उ.प्र. की तत्कालीन सपा सरकार ने तो रोहित शेखर को पूरा सम्मान देते हुए लालबत्ती से भी नवाजा लेकिन कुछ ज्यादा पाने की चाहत में रोहित समाजवादी से भगवाधारी हो गए और अपनी विधायकी पक्की करने के लिए उन्होंने जीवन की अंतिम अवस्था से गुजर रहे एक खांटी कांग्रेसी को भगवा चोला उड़ाने में परहेज नहीं किया। हालांकि चुनाव में टिकट न मिलने पर उनके द्वारा कतिपय समाचार माध्यमों से इस संदर्भ में सफाई प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि उनके पिता आजीवन कांग्रेसी थे व रहेंगे और इस विशेष अवसर पर वह सिर्फ उन्हें आशीर्वाद देने के लिए वहां मौजूद थे लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था और चुनावी जीत हासिल करने के बाद पं. तिवारी या उनका परिवार सूबे के भाजपाई नेताओं के किसी काम का न था। लिहाजा वर्तमान में तिवारी जी न कांग्रेसी रहे और न ही भाजपाई। न ही अब समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह इस हैसियत में है कि तिवारी जी का दुख-दर्द बांट सके। रहा सवाल तिवारी द्वारा गठित की गयी निरंतर विकास समिति या फिर कांग्रेस(टी) का, तो यह अपने गठन के वक्त ही अपना वजूद खो चुके थे। इन हालातों में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस बूढ़े व खांटी कांग्रेसी के पास आखिर ऐसा क्या है कि इस वक्त भी उसके तथाकथित जैविक पुत्र समेत कुछ लोग उसके इर्द-गिर्द सिमटे हुए हैं। क्या, यह पिता-पुत्र का वास्तविक प्यार और कुछ लोगों के द्वारा अपने राजनैतिक गुरू को वास्तविक अर्थों में दी जा रही सेवा मात्र है या फिर इसके पीछे कई गंभीर निहितार्थ छिपे हैं। अगर नेहरू युवा केंद्रों को लेकर रोहित शेखर व उनकी माताजी की सक्रियता पर गौर करें तो सब कुछ समझ में आ जाता है और पुराने लोग यह जानते हैं कि पूरे देश में लाखों करोड़ की सम्पत्ति रखने वाली इस संस्थान के पं. नारायण दत्त तिवारी आजीवन अध्यक्ष हैं। सवाल यह है कि नेहरू युवक केन्द्र के बाइलाज में ऐसा क्या है जो तिवारी जी के परिवार वालों व उनके निकटवर्तियों ने उसे अपना लक्ष्य बनाया हुआ है और वह कौन से कारण हैं जो पं. तिवारी के रहते-रहते उनके इन तथाकथित हितैषियों को उस सम्पत्ति पर काबिज नहीं होने दे रहे। यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर भविष्य की गर्भ में कैद हैं और समय के हिसाब से जिनका जवाब आना तय है लेकिन हम सभी पं. तिवारी के प्रति आस्थावान व उनके प्रशंसकों को यह खुशी होनी चाहिए कि ईश्वर ने उन्हें जीवन की इस अंतिम अवस्था न सिर्फ उनके सेवादारों की संख्या बढ़ा दी है बल्कि उनके परिवार में ऐसे लोगों को जोड़ा है जो कि तिवारी को लगातार खबरों में जिंदा रखे हुए हैं वरना इस देश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व जार्ज फर्नाडिस जैसे तत्कालीन बड़े नामों व पूर्व नेताओं की जनता को कोई खबर नहीं है और इतिहास गवाह है कि एक भरे-पूरे परिवार के होते हुए भी पूर्व रक्षा मंत्री के सी पंत किस तरह गुमनामी की मौत मरे हैं। हालातों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि तिवारी इस मामले में किस्मत के धनी हैं और अपनी जीवन की इस चैथी अवस्था में उनकी देखरेख करने व अन्य मशवरे के लिए उनके परिजन उनके नजदीक हैं जबकि उनकी मौत को लेकर पिछले दिनों उड़ी अफवाह के बाद समाचार संवाहकों व अन्य सक्षम लोगों के पास घनघनाएं फोन इस बात का प्रतीक हैं कि कई तरह के किंतु-परंतु के बावजूद देश व समाज के बीच से जनता का एक बड़ा हिस्सा उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है और उनके अघोषित राजनैतिक सन्यास व लंबे समय से किसी भी पद में न रहने के बावजूद उनके चाहने वालों की संख्या कम नहीं हुई है। एक जन नेता को इससे ज्यादा और क्या चाहिए।