गैर जिम्मेदाराना रवैय्ये के साथ | Jokhim Samachar Network

Friday, March 29, 2024

Select your Top Menu from wp menus

गैर जिम्मेदाराना रवैय्ये के साथ

सोशल मीडिया पर चल रही बेलगाम खबरें पहुंचा रही हैं देश की सामाजिकता को गंभीर नुकसान
हमने देखा कि किस तरह एक राजनैतिक दल की शह पर गुजरात के उभरते युवा नेता हार्दिक पटेल के चरित्र हरण का प्रयास हुआ और परम्परागत् मीडिया पर हावी नजर आने वाले सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा के इस्तेमाल के साथ ही साथ अश्लीलता की सभी हदें पार करने की कोशिश की गयी लेकिन कानूनी तौर-तरीके से इस पूरे प्रकरण पर कोई भी कार्यवाही नहीं हुई और न ही देश के किसी हिस्से के न्यायालय ने इस पूरे घटनाक्रम को स्वतः संज्ञान में लेते हुए फैसला सुनाया। ठीक ऐसा ही कुछ उत्तराखंड समेत उ.प्र. के मुख्यमंत्री रह चुके पं. नारायण दत्त तिवारी के साथ हुआ और उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के दिन आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के बीच उनकी मौत की खबर कुछ इस तरह वाइरल की गयी कि आयोजकों की पेशानी पर बल पड़ गए लेकिन किसी भी न्यायालय व पुलिस व्यवस्था ने इसे गंभीर मामले के रूप में नहीं लिया और न ही मीडिया के किसी हिस्से में इस तरह की पत्रकारिता का विरोध किया गया। इसलिए बात आयी-गयी हो गयी और खबरों की दुनिया में हड़कंप मचा देने वाले तमाम नये-नवेले पत्रकार सोशल मीडिया के नाम पर अपनी आजादी का जश्न मनाने निकल पड़े लेकिन इस तरह की तमाम चूको और सोशल मीडिया के नाजायज इस्तेमाल से भड़कने वाले साम्प्रदायिक दंगों व अन्य तरह के अपराध को देखते हुए यह स्वाभाविक रूप से सामने आता है कि क्या बिना किसी प्रशिक्षण अथवा योग्यता के खबरों से खेलने के संदर्भ में सोशल मीडिया पर मिली यह आजादी सही है। जहां तक सवाल अभिव्यक्ति की आजादी का है तो यह विषय उससे कतई अलग है क्योंकि खबर और विचार में एक बड़ा गंभीर फर्क है लेकिन कुछ विचारधारा विशेष से जुड़े लोग अपना पक्ष जनता के समक्ष ठोस तरीके से रखने के लिए विचार को खबरों की तरह पेश कर रहे हैं और एक राजनैतिक साजिश की तरह समाचार उपलब्ध कराने के तमाम चित-परिचित माध्यमों को संदिग्धता के घेरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि यह प्रयास नया नहीं है और देश में सोशल मीडिया की अतिसक्रियता एवं एक साथ गणेश जी की मूर्ति के दूध पीने जैसे समाचारों को जनता के बीच ले जाने के चमत्कार करने या फिर जनता को बरगलाने के खेल में कुछ लोगों को महारत हासिल है लेकिन अपने राजनैतिक लाभ अथवा अन्य फायदे के लिए इस तरह के करतबों को अंजाम देने वाले इस वर्ग के लिए सबसे बड़ा संकट यह है कि समाज के चिर-परिचित मीडिया अथवा नवोदित सोशल मीडिया के लगभग हर हिस्से पर तथाकथित रूप से बुद्धिजीवी कहलाये जाने वाले ऐसे तमाम पत्रकारों के समूह व संगठन सक्रिय हैं जो विचारधारा के नाम पर कुछ भी गलत अथवा सही परोसे जाने की व्यवस्था के हमेशा ही खिलाफ दिखते हैं और जिनकी कोशिश रहती है कि सूचना एवं संचार के माध्यमों का गलत उपयोग न होने पाये। लिहाजा विचारधारा को सर्वोपरि मानकर किसी भी वाद के आधार पर शासन करने की जिद करने वाले लोग जब सत्ता के शीर्ष पदों पर काबिज होते हैं तो उनकी पहली कोशिश होती है कि वह सूचना एवं संचार के स्थापित माध्यमों को छिन्न-भिन्न करने के साथ ही समाचारों के संकलन या फिर सही तरीके से संवर्धन की दिशा में कार्य कर रहे तमाम माध्यमों को तहस-नहस करने की कोशिश करें और इसके लिए उन्हें किसी भी कानून को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने अथवा बाजार के चित-परिचित समीकरणों के साथ उठापटक करने में कोई हर्ज महसूस नहीं होता। इस बात को अगर सीधे और स्पष्ट शब्दों में कहें तो हम यह भी कह सकते हैं कि जनता तक अपनी और सिर्फ अपनी बात पहुंचाने के लिए यह वर्ग न सिर्फ समाज के स्थापित माध्यमों पर कब्जेदारी के लिए न सिर्फ अति सक्रिय हो जाता है बल्कि कब्जे से बाहर दिखने वाले तमाम माध्यमों को तहस-नहस करने के लिए कोई भी पैतरा आजमाने से उसे इंकार नहीं होता। मौजूदा दौर में व्यवस्थाएं ठीक ऐसे ही हालात से गुजर रही हैं और हमें यह कहने में कोई हर्ज नहीं दिखता कि वर्तमान में केन्द्र के साथ ही साथ विभिन्न राज्यों की भी सत्ता पर काबिज भाजपा, भारतीय राजनीति का भगवाकरण करने की जिद में इतनी हद तक गिर चुकी है कि उसे किसी पत्रकार को पीटे जाने, जान से मार दिये जाने अथवा सरेआम बेइज्जत किए जाने में कोई कानूनी रोक-टोक या अन्य कष्ट नहीं होता और न ही उसके ऊर्जावान कार्यकर्ता किसी गलत खबर को सोशल मीडिया पर वाइरल करने अथवा जानबूझकर माहौल खराब करने की नीयत से पोस्ट की गयी फोटो व वीडियो पर अपना माफीनामा प्रस्तुत करते हुए पाए जाते हैं। इन हालातों में यह स्पष्ट है कि सरकारी तंत्र का एक बड़ा हिस्सा खबरों के जरिए सत्ता पक्ष का हित साधने के फेर में सूचना तंत्र की ऐसी की तैसी करने में लगा हुआ है और इस पूरी कवायद के दौरान उसे जब-जब कानून याद आता है तो कानून का डंडा व्यवस्था के खिलाफ ऊल-जुलूल तरीके से लिखने वालों के खिलाफ नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ लिखने वालों पर गरजने लगता है और समाचार पत्रों या फिर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे टीवी चैनलों पर कोई न कोई आफत टूटने लगती है। हम देख रहे हैं कि समाज के बीच स्थापित मीडिया अघोषित आपातकाल के दौर से गुजर रहा है और सत्ता के संरक्षण से समाचारों के नाम पर कुछ भी परोस रहे लोग रातों-रात लखपति या करोड़पति बनते जा रहे हैं लेकिन समाचारों या फिर इतिहास व अन्य के नाम पर परोसी जा रही यह जानकारी न तो ठोस है और न ही विश्वसनीय। इस तरह स्थापित मीडिया पर दोहरा हमला शुरू हो चुका है और संसाधनों के आभाव व विज्ञापनों की कमी से जूझ रहे मीडिया के एक बड़े हिस्से को जनता के बीच से भी यह लांछन सुनने को मजबूर होना पड़ रहा है कि यह मीडिया से जुड़े लोग ऐसे ही होते हैं लेकिन असल हकीकत क्या है इस तथ्य से बहुत ही कम लोग वाकिफ हैं। अगर सोशल मीडिया पर आने वाली तमाम तरह की खबरों, लेखों या अन्य सामग्री पर जाएं तो हम पाते हैं कि यह किसी चाईनीज कारखाने में उत्पादित माल की तरह सस्ता, चमकदार, आकर्षित करने वाला होता है और समाज के किसी भी हिस्से पर इसका तीक्ष्ण असर होता है जो भले ही कम देर तक रहता है। इसके ठीक विपरीत स्थानीय समाचार पत्रों में ठोक-बजाकर लिखे गए लेख अथवा सम्पादन से पूर्व कई कुशल हाथों से गुजरी खबरें खादी उत्पाद की तरह होती हैं जो कि धीरे-धीरे किंतु गंभीर व विचारात्मक असर करती हैं। वर्तमान भागमभाग वाले दौर में नई पीढ़ी का नौजवान जल्दी ही सब कुछ पा जाने की लालसा में जल्द असर दिखाने वाले किंतु कम टिकाऊ चाईनीज उत्पादों की ओर भाग रहा है और शायद यही वजह है कि भाजपा की सरकार व इसके तथाकथित हिन्दूवाद को युवाओं के एक बड़े हिस्से द्वारा हाथोंहाथ लिया गया है लेकिन झूठ व फरेब का यह मुलम्मा जब उतरना शुरू होगा तब तक शायद देर हो चुकी होगी और फर्जी समाचारों व तथाकथित रूप से गढ़ी गयी खबरों पर विश्वास कर बनाया गया झूठ का यह माहौल समाज के तमाम हिस्सों में कई तरह की मनहूसियत भर चुका होगा।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *