पंजाब के सत्तारूढ़ गठबन्धन की बढ़ रही है मुश्किले
पंजाब विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल की पतली हालत और भाजपा के नेताओ का जनता के बीच विरोध देखते हुऐ देश के गृहमंत्री ने खुद जनता से अपील की है कि वह भले ही वोट न दे लेकिन जनसभाओं में जूते-चप्पल न उछाले। हाॅलाकि सूचना संचार तन्त्र को काबू में कर चुनावी हार-जीत का गणित बैठाने में लगी भाजपा की पूरी कोशिश है कि वह सत्ता की दौड़ में आगे चल रही आम आदमी पार्टी के चर्चे बाहर न जाने दें और काॅग्रेस के कुछ लोग भी इस मुहिम में भाजपा व सत्ता रूढ़ दल के साथ दिखते है लेकिन हालात इशारा कर रहे है कि नशे के विरूद्ध आम आदमी पार्टी द्वारा पूर्व में चलाये गये विभिन्न अभियानो व नशे के व्यापार में सत्तारूढ़ दल व काॅग्रेस के कुछ नेताओ के हस्तक्षेप के चलते स्थानीय जनता का एक बड़ा हिस्सा यहाॅ भाजपा, काॅग्रेस व आकाली दल के नेताओ के खिलाफ बताया जा रहा है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को अपने तरीके से काम करने देने की राह में कई तरह की मुश्किलें खड़ी करने वाले भाजपा हाईकमान को यह मालुम है कि अगर पंजाब और गोवा में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाती है तो राजनीति के मैदान में तेजी से आगे आये इस नये राजनैतिक दल के आत्मविश्वास को रोक पाना असंभव होगा तथा पंजाब जैसे बड़े राज्य की सत्ता हाथ में आने के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओे को छोटे-बड़े पुलिस मुकदमों में फॅसाकर परेशान करना भाजपा के नेताओ के लिऐ आसान नही होगा। ठीक इसी तरह केन्द्र की सत्ता में वापसी को लेकर छटापटा रही काॅग्रेस भी यह मानकर चल रही है कि सिर्फ बयानों और प्रचार तन्त्र के बूते चल रही मोदी सरकार अगर इस ढर्रे से ही चलती रही तो आगामी दो वर्षो में देश की जनता उसका विकल्प तलाशना शुरू कर देगी। राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर सबसे बड़ा दल होने के कारण तमाम क्षेत्रीय दलो के साथ गठबन्धन कर दोबारा सत्ता पाना काॅग्रेस को आसान तो लगता है लेकिन केजरीवाल के तेजी से बढ़ते कदम उसे चिन्तित भी करते है। इसलिऐं भाजपा के साथ ही साथ काॅग्रेस का भी पूरा प्रयास है कि राजनैतिक हार-जीत के इस खेल में आम आदमी पार्टी का जिक्र कम से कम हो लेकिन पंजाब और गोवा के राजनैतिक हालात इशारा कर रहे है कि इन राज्यो की जनता ने कुछ और ही इरादा बना रखा है। पंजाब के चुनावी क्षेत्रो से भाजपा के प्रत्याशी का सामाजिक बहिष्कार करने या फिर उसकी चुनाव सभाओं में जूते-चप्पल उछाले जाने की खबरों ने भाजपा के बड़े नेताओं को चिन्ता में डाल दिया है तथा छन-छन कर बाहर आ रही खबरें यह बता रही है कि हाल-फिलहाल तो हालात गोवा और मणिपुर में भी भाजपा के पक्ष में नही है। राजनैतिक तोड़फोड़ कर मणिपुर व उत्तराखण्ड में चुनाव से पहले ही अपनी सरकार बनाने की भाजपाई कोशिश ने इन दोनो ही राज्यों में संवेधानिक संकट की सी स्थिति खड़ी कर दी है। मणिपुर में नेताओ के आचरण के खिलाफ दिख रहा आम जनता का गुस्सा जहाॅ राज्य को एक बार फिर उग्रवाद व राष्ट्रपति शासन की ओर धकेल रहा है वही उत्तराखण्ड में भाजपा व काॅग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता असंमजस में है क्योकि पार्टी छोड़ने और प्रत्याशी तोड़ने के खेल में भाजपा वहाॅ इतनी आगे निकल गयी है कि सहज ही यह अन्दाजा लगा पाना बड़ा मुश्किल है कि चुनाव के बाद कौन नेता कहाॅ होगा। उ0प्र0 में सपा और काॅग्रेस का गठबन्धन फिलहाल आगे दिखाई देता है और चुनाव से पूर्व हुऐ इस तालमेल के नतीजे यह इशारा करेंगे कि आगामी लोकसभा चुनावों में काॅग्रेस का भविष्य क्या होगा। खैर कुल मिलाकर अगर हम पंजाब और गोवा चुनावों की बात करे तो ऐसा मालुम होता है कि इन दो राज्यों में ठीक-ठाक प्रदर्शन कर आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल बनने की ओर आगे बड़ रही है तथा यह एक बड़ी खबर हो सकती है कि अपने तीन चार वर्षो के इस छोटे राजनैतिक जीवन में उसने पहली बार दिल्ली के अलावा किसी अन्य राज्य से चुनाव लड़ा है।