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Friday, April 19, 2024

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खाद्य सुरक्षा के सवाल पर

कितनी लोकप्रिय व ठोस साबित होगी हर जरूरतमंद के बैंक खाते में सब्सिडी स्थानांतरित करने की योजना।
खाद्य सब्सिडी को सीधे उपभोक्ता के खाते में दिया जाना वाकई सरकार का एक महत्वपूर्ण व बड़ा फैसला है और यह तय है कि उत्तराखंड सरकार के इस फैसले के बाद राशन की चोर बाजारी पर लगाम लगेगी लेकिन आनन-फानन में लिये गये इस फैसले के बाद कई महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े हो गये है क्योंकि इस फैसले से वर्तमान तक सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान चला रहे कई राशन डीलरो के सर बेरोजगारी का खतरा मडंराने लगा है वही सरकार द्वारा चलाये जा रहे कई महत्वपूर्ण राशन खरीद केन्द्रो के अस्तित्व पर भी सवालिया निशान खड़े हो गये है और उत्तराखंड जैसे दुर्गम परिस्थितियों वाले प्रदेश में अगर सरकार द्वारा अन्न का भंडारण करना बंद कर दिया जाता है तो यह निश्चित जानिये कि पहाड़ में जहाँ एक ओर कृत्रिम महंगाई बढ़ेगी वही दूसरी ओर सूदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में भुखमरी का खतरा भी बढ़ जायेगा। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि सरकारी नियन्त्रण में चलने वाले सस्ते राशन के खेल में बड़ा गोल-माल है और राज्य में बनने वाली तथाकथित जनहितकारी सरकारें अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिऐ जनसुविधाओं की आपूर्ति के नाम पर तमाम ऐसे परिवारों को सस्ता राशन मुहैय्या कराती रही है जो वाकई में इसके हकदार नही है लेकिन इस सबके बावजूद सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानो में मिलने वाला राशन उन तमाम गरीब व बेसहारा परिवारों का भी एकमात्र सहारा था जो विभिन्न कारणों से अपने लिये दो वक्त की रोटी जुटा पाने में असमर्थ है। हांलाकि सरकार यह कहती है कि वह उपभोक्ताओं व जरूरतमंदों को उनके खाते में सीधे-सीधे रकम स्थानांतरित कर उन्हें सस्ता अनाज मुहैय्या कराया जाना सुनिश्चित करेगी लेकिन सरकार के पास यह तय करने का कोई रास्ता नही है कि जरूरतमंद परिवार के मुखिया ने सरकार द्वारा अनाज में छूट के रूप में दी गयी रकम को वास्तव में सही मद में ही खर्च किया है और सरकार ने अपनी घोषणा में यह भी स्पष्ट नही किया है कि उसके द्वारा जरूरतमंदो को छूट या विशेष सहायता के रूप में दी गयी इस रकम को बैंक अपने द्वारा वसूले जा रहे तमाम तरह के शुल्क के रूप में नही काट लेंगे। उपरोक्त के अलावा सरकार यह भी सुनिश्चित नही कर पायी है कि वर्तमान तक राशन ढ़ुलान व अन्य मदो में सरकार द्वारा खर्च की जाने वाली रकम को उपभोक्ता के खाते में स्थानांतरित किया जायेगा अथवा नही। सबसे चिन्ताजनक तथ्य यह है कि सरकार का बाजार भाव व जरूरी खाद्य सामग्री की कालाबाजारी अथवा कृत्रिम रूप से बढ़ायी जाने वाली मंहगाई पर कोई नियन्त्रण नही है जिसके चलते सरकार द्वारा लिया गया यह फैसला उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रो में भुखमरी के चलते होने वाली मौतो की ओर ले जा सकता है। वर्तमान में चल रही व्यवस्थाओं के मद्देनजर सरकार गेहूँ-चावल समेत तमाम जरूरी खाद्य सामग्रियो की खरीद कर उन्हें एक निश्चित कीमत में जनता को पहुँचाती रही है जिसके चलते प्राकृतिक आपदा जैसी तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में राशन की कमी या फिर भुखमरी के चलते होने वाली मौतों का सिलसिला नही देखने को मिलता लेकिन मंत्रीमण्डल के हालिया निर्णय के बाद सामने आये सरकार के फैसले के बाद इस पूरी व्यवस्था का तहस-नहस हो जाना सुनिश्चित है और यह तथ्य भी किसी से छुपा नही है कि राज्य निर्माण के उपरांत ज्यादा तेजी से हुऐ पलायन ने पहाड़ की कृषि व्यवस्था व स्थानीय कृषि उत्पादो की खेती को पूरी तरह चैपट कर दिया है जिसके कारण सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों मे रह रही अधिकांश आबादी अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने या फिर दो टाइम के लिये रोटी की व्यवस्था करने के लिये पूरी तरह बाजार पर निर्भर है। टूटे खस्ताहाल मार्गो, महीनों तक बंद रहने वाले तमाम सम्पर्क मार्गो या फिर मीलो के लंबे पैदल सफर के बाद कोई भी व्यवसायी सरकार द्वारा सीधे उपभोक्ता के खाते में स्थानांतरित की गयी रकम के दायरें में बंध रहकर जरूरी कृषि उत्पादों या उपभोक्ता सामग्री को ग्रामीण क्षेत्रो के सीमित दायरें वाले बाजार में पहुँचायेगा भी या नहीं, इस विषय पर सरकार पूरी तरह मौन है और सरकार का यह मौन जरूरतमंदो व गरीबो पर कहर बनकर कभी भी छूट सकता है लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश कर रहे सरकारी तंत्र को इन सभी विषयों की कोई चिन्ता नही है क्योंकि हमारे नेता व सरकार चलाने वाले नौकरशाह व्यापक जनहित व जनता की वास्तविकता जरूरतों से दूर होते जा रहे है। अगर सरकार यह मानती है कि वर्तमान में चल रही सस्ता अनाज देने की व्यवस्था में बड़ा गोलमाल है तो इस गोलमाल को रोकने या फिर अपने तंत्र में पारदर्शिता लाने की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी है लेकिन सरकार ने पूरी बेशर्मी के साथ अपनी इस जिम्मेदारी से कन्नी काटते हुऐ प्रदेश के कई जरूरतमंद परिवारों को मौत के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है और पहाड़ में लगातार बढ़ रही देवीय आपदाओ व बादल फटने के सिलसिले के बाद यह तय है कि सरकार की इस जल्दबाजी का खामियाजा देर-सबेर उस जनता को ही भुगतना है जिसने भाजपा को राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का जनादेश दिया है। अगर वर्तमान सरकार वाकई व्यापक जनहित को लेकर चिन्तित होती तो वह अपना कोई भी फैसला सुनाने से पूर्व यह सुनिश्चित अवश्य करती कि हर जरूरतमंद परिवार को दो वक्त की रोटी अवश्य मुहैय्या हो लेकिन सरकार कुछ लोगो के खातो मे मामूली रकम स्थानातंरित कर इस बड़ी जिम्मेदारी से बचना चाहती है और सरकारी फैसले में कहीं से भी यह स्पष्ट नही होता कि छूट अथवा सब्सिडी की यह धनराशि जरूरतमंद के खाते में स्थानातंरण की प्रक्रिया पूर्णतया भ्रष्टाचार से मुक्त व पारदर्शी होगी। सब्सिडी की रकम सीधे उपभोक्ता के खाते तक पहुँचाने के मामले में सरकारी तंत्र कितना लेटलतीफ है, यह हम सब गैस सब्सिडी को लेकर महसूस कर रहे है और यह मामला तो सीधे तौर पर उस वर्ग के जीवन-मरण से जुड़ा है जो वाकई में दो वक्त की रोटी के लिये भी मोहताज है। इन हालातों में एक सफल व्यवस्था को बंद कर प्रदेश के गरीब व बेसहारा वर्ग को सीधे-सीधे सरकारी बाबूगिरी के हवाले करना कितना न्यायपूर्ण व लोकप्रिय होगा, कहा नही जा सकता। अगर सरकार वाकई में इस व्यवस्था में सुधार लाना चाहती तो उसके और भी कई तरीके थे और सरकारी तंत्र अपनी तथाकथित बहुउद्देशीय योजनओ में अमूलचूल परिवर्तन लाकर प्रदेश के हर नागरिक को सबल व सक्षम बनाने की दिशा में भी प्रयास कर सकता था लेकिन सरकार ने ऐसा कोई भी रास्ता चुनने की जगह जरूरतमंदो के पेट पर लात मारने वाला रास्ता अख्तियार किया है। इन हालातों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बड़े-बड़े वादे व विकास के डबल इंजन के साथ प्रदेश को आगे ले जाने के दावे कर सत्ता के शीर्ष पदो पर काबिज भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेता व सम्मानित जनप्रतिनिधि इस ज्वलंत मुद्दे पर आम जनता के सवालो का सामना कैसे करते है और आयोग बनाकर पलायन रोकने का दावा करने वाली प्रदेश की त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सामने आने वाली समस्याओं का निस्तारण करने में किस हद तक सफल होती है। सरकार अपने इस फैसले को अमलीजामा पहना पायेंगी अथवा नही या फिर सरकार के इस फैसले के बाद विपक्ष का रूख क्या होगा, यह तमाम प्रश्न अभी भविष्य के गर्भ में कैद है और यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि सरकार के इस फैसले के बाद खाद्य सुरक्षा अथवा संरक्षण में लगे लम्बे-चैड़े सरकारी अमले का क्या होगा लेकिन मंत्रीमण्डल के सामूहिक दायित्व के रूप में सामने आये इस फैसले से यह तो सुनिश्चित हो ही गया है कि अपने गठन के बाद से वर्तमान तक प्रदेश की सामान्य जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल व सुगम यातायात देने के मामले में पूरी तरह असफल सिद्ध हुई प्रदेश की यह तथाकथित जनहितकारी व लोकप्रिय सरकार अब अपनी एक और जिम्मेदारी से दूर भागने की कोशिश कर रही है।

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