गुजरात व राजस्थान समेत कई राज्यों के चुनावों की तैयारी में जुटी भाजपा ने जीएसटी में बदलाव कर दिए राहत के संदेष
यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा किस तरह अन्य राजनैतिक दलों से अलग है या फिर सुशासन की बात करने वाले भाजपा के लोग आम आदमी को परेशान कर किस तरह का सुशासन लाना चाह रहे हैं। आंकड़े गवाह है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद न सिर्फ रामदेव, अंबानी और अडानी जैसे बड़े पूंजीपतियों की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि हुई है बल्कि नोटबंदी के दौरान भाजपा के कई छोटे-बड़े नेताओं के पास से नकद राशि के रूप में भारी मात्रा में नये नोट बरामद होने की कई घटनाएं सामने आयी हैं लेकिन सरकार ने कहीं भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि इन लोगों के पास यह नये नोट कहां से आये या फिर नोटबंदी के दौरान लगभग पांच सौ करोड़ रूपया खर्च कर बेटी की शादी करने वाले रेड्डी बंधुओं ने भुगतान व अन्य खर्चों हेतु नकद राशि का भुगतान कैसे किया। इस तरह के और भी कई सवाल हैं जो आम आदमी को मथ रहे हैं। जैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र की सम्पत्ति एक ही साल में कई हजार गुना बढ़ने की नई खबर ने आम आदमी की पेशानी पर बल ला दिए हैं या फिर ताबूत के आभाव में सेना के जवानों के शव गत्ते की पेटियों में भेजे जा रहे हैं और मजे की बात यह है कि इस तरह की तमाम भाजपा विरोधी खबरों के लिए उस सोशल मीडिया को ही हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जो कभी भाजपा के तीसरे दर्जे के नेता नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय अस्मिता के रूप में स्थापित करने में मददगार साबित हुआ था। सत्ता के मद में चूर भाजपा के नेताओं ने जन सामान्य की दुखती रग पहचानने वाले तथा आम जनता के निचले स्तर तक पहुंच रखने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से अर्थात् छोटे समाचार पत्र-पत्रिकाओं को नकारकर पहले ही अपने लिए एक मुसीबत मोल ले ली है और अब सोशल मीडिया में अपने खिलाफ वाइरल हो रही खबरों पर धमकाने वाले अंदाज में न्यायालय का रूख कर रहे भाजपा के बड़े नेता एक और बड़ी गलती करने जा रहे हैं। इन हालातों में अगर मोदी जी अपने मंत्रीमंडल व भाजपा के कैडर मतदाता की नाराजी लेकर एक बार फिर सत्ता में आने की सोच रहे हैं तो इसे उनकी गलतफहमी कहा जा सकता है।