आवाज दो हम एक हैं | Jokhim Samachar Network

Friday, April 19, 2024

Select your Top Menu from wp menus

आवाज दो हम एक हैं

जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखंड की देहरादून इकाई के द्विवार्षिक सम्मेलन व चुनावों के दौरान खुलकर सामने आयी पत्रकारों की तमाम समस्याएं

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक सादे समारोह के साथ हुई जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखंड की बैठक अपने पीछे कई ज्वलंत मुद्दे व सवाल छोड़ गयी और वक्ताओं को सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ कि वाकई पत्रकारिता एक खतरनाक दौर से गुजर रही है। हालांकि मौका संगठन के द्विवार्षिक चुनाव का था और विचारों की अभिव्यक्ति व उद्बोधन के लिए कोई विषय भी निर्धारित नहीं किया गया था लेकिन इस बैठक के दौरान मौजूद पत्रकार बंधुओं की ठीक-ठाक संख्या तथा बिना किसी टोका-टोकी के एक दूसरे को सुनने की तन्मयता को देखकर ऐसा लगा मानो लोकतंत्र का यह चैथा स्तम्भ वाकई खतरे के दौर से गुजर रहा है और अपने अधिकारों व हकों की रक्षा के साथ ही साथ अपने बैनर को बचाने के लिए समाचार पत्रों का एक मंच के नीचे आना आवश्यक हो गया है। सामान्यतः यह प्रतीत होता है कि विभिन्न राजनैतिक व सार्वजनिक मंचों से सम्मान पाने वाले तथा अपनी खबरों के जरिये सरकार पर दबाव बनाने वाले मीडिया में सब कुछ ठीक ही ठीक है और केन्द्र सरकार के अलावा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा प्रचार-प्रसार के मद में रखे गए बड़े बजट के साथ ही साथ अपने औद्योगिक उत्पादों के लिए बाजार की तलाश में रहने वाला पूंजीपति व अन्य व्यवसायिक वर्ग विभिन्न संसाधनों व तरीकों से मीडिया कर्मियों को आर्थिक आलम्बन प्रदान करता रहता है लेकिन इस बैठक के दौरान वक्ताओं को सुनकर महसूस हुआ कि देश की आजादी के बाद पिछले कुछ वर्षों में जनसुरक्षा का कवच समझे जाने वाले मीडिया हाउसों ने व्यवसायिक स्वरूप अंगीकार कर लिया है और मीडिया के एक छोटे हिस्से पर पूंजीपति घरानों की कब्जेदारी के बाद जनसरोकारों के प्रति समर्पित मानी जाने वाली पत्रकारिता में धंधेबाजी लगातार बढ़ती जा रही है। यह माना कि उदारवादी अर्थव्यवस्था के इस दौर में बाजार में टिके रहने के लिए कतिपय समाचार पत्रों व अन्य मीडिया घरानों द्वारा अपनाया गया व्यवसायिक स्वरूप गलत भी नहीं कहा जा सकता और न ही यह उम्मीद की जा सकती है कि बिना विज्ञापन एवं अन्य प्रचार सामग्री के मीडिया के विभिन्न स्वरूपों को बचाकर रखा जा सकता है लेकिन विज्ञापनों की इस मारामारी में जनता से धोखा करते इन चंद घरानों की वजह से मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत् तमाम पत्रकारों व बुद्धिजीवियों को जो बदनामी झेलनी पड़ रही है उसका दर्द इस बैठक में साफ दिखाई दिया। इसे आश्चर्यजनक सत्य के रूप में स्वीकारा जा सकता है कि संगठन की इस बैठक में छोटे समाचार पत्रों के मालिकान व उनसे जुड़े पत्रकारों की एक बड़ी संख्या होने के बावजूद न सिर्फ मजीठिया आयोग की रिपोर्ट से जुड़े सवालों को प्रमुखता से उठाया गया बल्कि समाचार अथवा सूचना प्रसारण के अन्य माध्यमों जैसे टीवी चैनल्स अथवा सोशल मीडिया के पत्रकारों को लेकर भी कोई विरोध नहीं दिखा तथा सभा स्थल पर मौजूद समस्त पत्रकारों ने ‘हम सब एक हैं’ की तर्ज पर संघर्ष का नारा देते हुए मीडिया के हर हिस्से में कार्यरत् पत्रकार साथियों से अपने वजूद को बचाने के लिए लड़ी जा रही इस लड़ाई में आहुति देने की गुहार लगायी। हालांकि यह विश्वास किया जाना मुश्किल है कि संगठन के मंच पर बड़े-बड़े वादे करने वाले पत्रकारों व छोटे-मझोले समाचारों के यह प्रतिनिधि अपने सामान्य जीवन में भी उसी संघर्ष का मद्दा रखते होंगे जिसकी घोषणा एक सार्वजनिक मंच से की गयी और अपने सहोदरों के अधिकारों की रक्षा व उनके हितों के संरक्षण के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ने का दावा करने वाली इस तरह की यूनियन या संगठन वास्तविकता के पैमाने पर भी उतने ही सफल साबित होते होंगे जितना कि इन्हें विभिन्न सामाजिक व संगठनात्मक मंचों से साबित करने का प्रयास किया जाता है लेकिन इस सबके बावजूद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पत्रकारों की इस बैठक में भागीदारी के बाद एक पल के लिए यह अहसास हुआ कि अगर हम एकजुटता के साथ आगे बढ़ें तो राहों की मुश्किलें आसान की जा सकती हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि केन्द्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार ने छोटे समाचार पत्रों का प्रकाशन रोकने के लिए नीतियों के निर्धारण के नाम पर कई तरह के हथकंडे अपनाकर मीडिया पर अंकुश रखने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है और विभिन्न राज्यों में बनने वाली भाजपा की तमाम जनहितकारी सरकारें भी इसी दिशा में काम कर रही हैं। यह माना जा रहा है कि सरकार चलाने वाली विचारधारा को लगता है कि व्यापक जनहित से जुड़े मुद्दे उठाने वाले तथा जनता की आवाज बनकर सरकार तानाशाही व भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों पर अंकुश लगाकर काफी लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर कायम रह सकती है और जन सामान्य के बीच अपनी पहुंच रखने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से को जोर-जबरदस्ती बंद करवाकर या फिर धमकाकर सरकार अपने खिलाफ उठने वाले विरोध के सुरों को आसानी के साथ मंद कर सकती है। शायद यही वजह है कि सरकार ने जहां एक ओर मीडिया के ज्यादा प्रभावी व बिकाऊ हिस्से की अपने पूंजीपति मित्रों की मदद से खरीद फरोख्त शुरू कर दी है वहीं दूसरी ओर मजीठिया आयोग की रिपोर्ट लागू न कर मीडिया के एक अन्य हिस्से पर अघोषित कब्जेदारी की कोशिशें तेज हो गयी हैं। इस सारी जद्दोजहद के बीच सरकार ने मीडिया के शेष बचे हिस्से (जिसमें अधिसंख्य छोटे व मझोले समाचार पत्र व पत्रिकाएं शामिल हैं) को जारी होने वाले विज्ञापनों पर अघोषित रोक लगाकर तथा अपने प्रकाशन को बनाये रखने के लिए तमाम छोटी बड़ी शर्तों को कानूनी बाध्यता का रूप देकर अपने खिलाफ उठने वाले सुरों को न सिर्फ मंद करने का प्रयास किया है बल्कि सरकार की कोशिश तमाम छोटे व मझोले समाचार पत्रों के प्रकाशन पर अघोषित रोक लगाकर अपनी मनमर्जी के हिसाब से खबरों के प्रचार-प्रसार की है। अगर गंभीरता से गौर करें तो हम पाते हैं कि हावी होते दिखते समाचार चैनलों व उनमें प्रसारित होने वाली खबरों व परिचर्चाओं में से अधिकांश को जनता ने टाइमपास व मनोरंजन की तरह लेना शुरू कर दिया है। ऐसे समय में सोशल मीडिया के जरिये जनपक्ष को रखने की प्रवृत्ति पत्रकारों के बीच तेजी से बढ़ी है और सूचना संचार की क्रांति के इस दौर में कई तरह के समाचार पोर्टलों व खबरिया चैनलों की बाढ़ सी आ गयी प्रतीत होती है लेकिन यह अनुभूति की जा रही है कि सोशल मीडिया में प्रसारित इन खबरों पर कोई लगाम न होने तथा सूचना संचार के इस माध्यम का राजनीतिज्ञों व अन्य महत्वाकांक्षी व्यक्तित्वों द्वारा अपने निजी हित में प्रयोग किए जाने के चलते खबरों की सत्यता की पुष्टि की नीयत से जनसामान्य का एक बढ़ा हिस्सा प्रिंट मीडिया में अपने मतलब की खबरें तलाश रहा है जिसके चलते समाचार पत्रों के आम जनता के बीच महत्व बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। लिहाजा यह तय दिखता है कि प्रिंट मीडिया के लिए कठिन माना जाना रहा यह दौर इस क्षेत्र में वर्षों से कार्य कर रहे कलमजीवी पत्रकारों व लेखकों को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकता है लेकिन मीडिया संस्थानों के मठाधीशों के रूप में चंद समाचार पत्रों पर काबिज पूंजीपति विचारधारा तथा अपने निहित स्वार्थों के चलते इन पूंजीपतियों के साथ खड़ा दिख रहा सत्ता पक्ष यह नहीं चाहता कि जनपक्ष के हितैषी व चिंतक के रूप में जनसामान्य की आवाज बनने वाले छोटे व मझोले समाचार पत्रों के समूह उनके खिलाफ जाने वाली खबरों की पुष्टि के माध्यम बने या फिर खबरें छापने और छुपाने के नाम पर पर्दे के पीछे खेले जा रहे एक बड़े खेल को जनता के बीच उजागर होने दिया जाय। लिहाजा छोटे और मझोले समाचार पत्रों के प्रकाशन व उन्हें दिये जाने वाले विज्ञापनों को लेकर सरकार सख्त रूख अपनाती दिख रही है और मीडिया के क्षेत्र में कार्य कर रहे पत्रकारों व कर्मचारियों को बिकाऊ या भांड साबित करने के लिए पूरी चालाकी के साथ सरकार द्वारा अपने प्रचार-प्रसार को लेकर खर्च किए जाने वाले बजट का कच्चा चिट्ठा जनता के समक्ष रखा जा रहा है लेकिन कोई भी सरकार या उसका समर्थक यह बोलकर राजी नहीं है कि सरकारी तंत्र की ओर से दिए जाने वाले इन विज्ञापनों का एक बड़ा हिस्सा उन पूंजीपति के कब्जे वाले समाचार पत्रों अथवा टीवी चैनलों को जा रहा है जो पूरी तरह सरकारी भोंपू के रूप में काम कर रहे हैं जबकि लगभग सभी छोटे व मझोले समाचार पत्र व पत्रिकाएं अपने सीमित साधनों के दम पर आम आदमी की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर तथ्यों की गंभीरता पर गौर करें तो हम पाते हैं कि पत्रकारों की कठिनाईयों में वाकई इजाफा हुआ है और तकनीकी के क्षेत्र में हासिल की गयी सुविधाओं के बावजूद हम नई पीढ़ी के युवाओं में यह भरोसा जगाने में नाकामयाब रहे हैं कि रोजगार के सम्मानित संसाधन के रूप में पत्रकारिता के पेशावराना तौर-तरीकों को अपनाया जाना या फिर समाचार पत्रों व पत्रिकाओं का प्रकाशन किसी भी तरह से फायदे का सौदा है। लिहाजा यह कहना कठिन है कि जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखंड या फिर ऐसे ही तमाम संगठनों द्वारा पत्रकारों या छोटे व मझोले समाचार पत्रों के पक्ष में लगायी गयी हुंकार इनके वजूद को बचाने में कारगर भूमिका निभा सकती है। हां यह तब जरूर संभव है जब यह तमाम जनहितकारी व सामाजिक संगठन व्यवसायिक सोच के साथ खुद अपनी व अपने सहयोगियों की रक्षा के लिए आगे आएं लेकिन इसके लिए आवश्यक पहली शर्त के रूप में इन संगठनों से जुड़े सभी सदस्यों ने निजी स्वार्थों को बहुत पीछे छोड़ना होगा।
बाॅक्स
जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखंड की जिला इकाई का द्विवार्षिक अधिवेषन
दर्पण की तरह साफ होनी चाहिए पत्रकारिता: डा0 फारूख
देहरादून। समाजसेवी एवं प्रसिद्ध उद्योगपति डा0 एस0 फारूख ने कहा कि पत्रकारिता एक दर्पण की तरह साफ होनी चाहिए। यह प्रयास किया जाना चाहिए कि इससे समाज को नई दिशा मिले ताकि समाज में व्याप्त बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंका जा सके।उक्त विचार उन्होंने आज परेड ग्राउन्ड स्थित उज्जवल रेस्टोरंट में आयोजित जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखण्ड के जनपद इकाई के द्विवार्षिक अधिवेशन में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मीडिया लोकतन्त्र का चैथा स्तम्भ है। इसलिए इसकी जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। जिसे निभाने के लिए मीडिया को अत्यन्त संवेदनशीलता से कार्य करना चाहिए। उन्होनें कहा कि जब हर पेशे में शैक्षिक योग्यता का मापदण्ड है तो विधायको व सांसदो के लिए भी योग्यता का पैमाना निर्धारित होना चाहिए। विशिष्ट अतिथि जिला पंचायत सदस्य हेमा पुरोहित ने कहा कि स्वाधीनता आंदोंलन में पत्रकारों का बहुत बड़ा योगदान है। कलम की ताकत बड़ी होती है। सरकारों द्वारा जब कभी भी जनविरोधी नीतियों को लागू करने की कोशिश की गई तो मीडिया ने जनता की आवाज बनकर उसका विरोध किया। विंिशष्ट अतिथि लण्डौर कैण्ट के उपाध्यक्ष महेश चन्द्र ने कहा कि पत्रकारों को हर हमेशा सच लिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति का स्वरूप बदल रहा है इसलिए भी पत्रकारों पर बड़ी जिम्मेदारी है। अधिवेशन में वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत व योगेश भट्ट ने मीडिया में आ रहे बदलाव को चिन्तनीय बताया । उन्होंने कहा कि बड़े मीडिया में आम जनता के सवाल हाशिए पर डाल दिये गये हैं। और उसने आम आदमी को सोचने समझने की क्षमता पर ग्रहण लगा दिया है। उन्होनें कहा कि पत्रकारिता मिशन नहीं रहा पेड न्यूज है खबर बिक रही है। बाजारवाद ने मीडिया को बाजारोन्मुखी बना दिया है। अगर पत्रकार न चेते तो पत्रकारिता खतरे में पड़ जायेगी।यूनियन के प्रदेश महामंत्री गिरीश पंत ने यूनियन के कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यूनियन लगातार पत्रकारों की लम्बित समस्याओं को हल करने को प्रयासरत है। अधिवेशन में वरिष्ठ पत्रकार संजीव पंत, शाह नजर, भगीरथ शर्मा, आदित्य चन्द बडोनी, अरूण प्रताप सिंह, द्विजेन्द्र बहुगुणा, विजय शर्मा ने भी अपने विचार रखते हुए पत्रकारों को अपने हितों की लड़ाई लड़ने के लिए एक झंडे के नीचे आने का आहवान किया। अधिवेशन का संचालन वरिष्ठ पत्रकार संजीव शर्मा ने किया। अधिवेशन के दूसरे सत्र में जर्नलिस्ट यूनियन आॅफ उत्तराखण्ड (रजि.) देहरादून इकाई की नई कार्यकारिणी के चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी उमाशंकर प्रवीण मेहता एवं उपचुनाव अधिकारी संजीव पंत को बनाया गया जिनकी देखरेख में चुनाव सम्पन्न हुआ। जिसमें सर्वसम्मति से ठाकुर सुक्खन सिंह को अध्यक्ष, चेतन खड़का को महामंत्री व जाहिद अली को कोषाध्यक्ष निर्वाचित किया गया। जिला कार्यकारिणी के अन्य पदों पर मनोनीत करने का अधिकार नवनियुक्त अध्यक्ष व महामंत्री को सौंपा गया। अधिवेशन में वीरेन्द्र डंगवाल, अर्जुन सिंह बिष्ट, त्रिलोचन भट्ट, ललिता बलूनी, एस0पी0 उनियाल, मूलचन्द शीर्षवाल, अशोक खन्ना, अशोक सिंघल, अनुराधा ढौंडियाल, अवनीश गुप्ता, विरेश कुमार, रमन त्यागी, महेश सैनी, नरेन्द्र सिंह कार्की, समीना, दीपक सेलवान, ऋषि शुक्ला, के0एस0 बिष्ट, अरूणेन्द्र भंडारी, ज्योति भट्ट ध्यानी, चेतराम भट्ट, प्रवीण जैन, एम0एम0 मलिक, संजय अग्रवाल, महेन्द्र चैहान समेत काफी संख्या में पत्रकार मौजूद थे।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *