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Saturday, April 20, 2024

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आधी अधूरी तैयारियों के साथ

सदन में पूर्ण बहुमत के बावजूद साफ नज़र आयी सत्तापक्ष की कमजोरी उत्तराखण्ड के दो दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान अपनी सीमित संख्या के बावजूद मुद्दे उठाने में कामयाब रहा विपक्ष आगामी समय में अपनी रणनीति में क्या तब्दीली करता है यह तो पता नहीं लेकिन इतना तय है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में इन्दिरा हद्वेश शुरूवाती दौर से ही एक मिसाल कायम करने में कामयाब रही है और उनके नेतृत्व में विपक्ष के विधायकों ने ज्वलन्त मुद्दों व लोकहित से जुड़ी समस्याओं को बखूबी उठाया है जबकि सत्ता पक्ष के विधायकों में अनुभव की कमी साफ झलकती है और सदन के भीतर असहज दिखती सरकार की स्थिति यह साबित करती है कि सत्तापक्ष के विधायकों व मन्त्रियों को संसदीय कामकाज के बारे में अलग से प्रशीक्षण दिये जाने की आवश्यकता है। हांलाकि नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद अब तक दो बार आहूत हो चुके विधानसभा सत्र में विपक्ष के पास प्रश्नवाण छोड़ने के लिए ज्यादा मसाला न होने के चलते सरकार की कोई किरकिरी नहीं हुई और न ही संसदीय कार्यमंत्री के रूप में प्रकाश पन्त कहीं कमजोर पड़ते दिखाई दिये लेकिन सदन के माहौल और विपक्ष की गम्भीरता को देखकर यह अहसास हो रहा है कि अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले कल में सत्तापक्ष की मुश्किलें बढ़ सकती है। यह ठीक है कि अपने शासनकाल में राशन की दुकानों में मिलने वाले सस्ते अनाज का मूल्य बढ़ाने का फैसला लेने वाली कांग्रेस मूल्य वृद्धि का विषय उठाने के बावजूद सत्ता पक्ष के तर्को के सामने नहीं टिक सकीं और सदन से बर्हिगमन कर इस विषय से अपनी असहमति व्यक्ति करने के बावजूद वह सत्ता पक्ष को इस मुद्दे पर पुनर्विचार के लिए तैयार नहीं कर सकी लेकिन एक जागरूक विपक्ष के रूप में कांग्रेस ने सदन को भीतर व बाहर दोनों जगह जिस अन्दाज ने यह मुद्दा उठाया और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में देहरादून के गांधी पार्क के बाहर आहूत मूल्य वृद्धि के खिलाफ धरने में खुद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल हुए उससे यह स्पष्ट है कि कांग्रेस सत्ता पक्ष को थोड़ी भी मोहलत देने के पक्ष में नहीं है। ठीक इसी प्रकार पहाड़ों में चल रहे शराब विरोधी आन्दोलन का जिक्र सदन में कर तथा इस संदर्भ में पूर्ण शराबबन्दी का मुद्दा सदन में उठाकर जनपक्ष को आगे लाने में भी कांग्रेस कामयाब दिखी। हांलाकि कांग्रेस सरकार के शासनकाल में भी शराब विपक्ष के लिए एक प्रमुख मुद्दा रही और शराब के बड़े कारोबारियों के दबाव व सहयोग के चलते विपक्ष दलों ने सत्ता पक्ष में बगावत को अंजाम देकर कांग्रेस की सरकार गिरने की असफल कोशिश भी की लेकिन निवर्तमान कांग्रेस सरकार में शराब के मुद्दे को लेकर व्यापक जनान्दोलन नहीं हुए जबकि वर्तमान में लगभग पूरा उत्राखण्ड शराब की दुकानों के विरोध में चल रहे आन्दोलनों की तपिश से जल रहा है और सरकार स्वयं यह स्वीकार कर रही है कि अपने पूरे प्रयासों के बाद भी भारी जनविरोध के चलते सरकार पूर्व के मुकाबले आधी से भी कम दुकाने खुलवा पाने में सफल हो पायी है। हालातों के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि राज्य की जनता पूर्ण शराबबन्दी की पक्षधर है और भारी जनमत के साथ सत्ता के शीर्ष पर काबिज त्रिवेन्द्र सिंह रावत से उन्हें उम्मीद है कि वह व्यापक जन अपेक्षाओं का सम्मान करते हुए राज्य में पूर्ण शराबबन्दी लागू करेंगे। यहां पर यह जिक्र करना भी आवश्यकक हो जाता है कि शराबबन्दी के मामले को सदन में जोर-शोर से उठाये जाने के बावजूद सदन से बाहर कांग्रेस इस मुद्दे पर खामोश है और हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में नशे के विरोध में एक व्यापक मुहिम चलने का दावा करते हुए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले उनके पुत्र व वर्तमान में कांग्रेस संगठन के महासचिव आनन्द रावत की इस मुद्दे पर चुप्पी कहीं न कहीं कांग्रेसियों के चाल-चरित्र पर एक सवालियां निशान खड़ा करती है। यह ठीक है कि राज्य में चुनावी मौसम आने में अभी वक्त है तथा यह यकीनी तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान में सरकार के खिलाफ खड़ा किया गया कोई भी जनान्दोलन आगामी चुनावों में मुद्दा बन भी पायेगा या नहीं लेकिन हमारें नेताओं और विशेषकर राजनीति को अपना पेतृक व्यवसाय समझ इसमें दो-दो हाथ आजमाने की ख्वाइश रखने वाले नवोदित नेताओं को ध्यान रखना होगा कि जनता के मुद्दों पर संघर्ष व जनजागरूकता का मिशन सिर्फ सत्ता पाने के लिए अथवा सत्ता में रहकर ही नहीं होता। वस्तुतः राजनीति खुद में एक बड़ा संघर्ष है और इसमें बने रहने व जनता के बीच अपनी पहचान कायम रखने के लिये सतत् रूप से आन्दोलनरत् रहना तथा जनान्दोलनों में सहभागिता करना आवश्यक है। खैर अगर एक बार फिर अपने मूल विषय की ओर लौटते हुऐ दो दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान हुई कार्यवाही व इस दौरान पारित विधेयकों पर चर्चा करे तो हम पाते है कि सरकार उपरोक्त सत्र आहूत करने के मूल उद्देश्य में कामयाब रही और सरकार ने सर्वसम्मति से उत्तराखण्ड माल एवं सेवा कर विधेयक-2017 सदन में पारित करने में कामयाबी हासिल कर ली। सरकार का अनुमान है कि इस विधेयक के लागू होने के बाद उसकी आय में एक हजार करोड़ से अधिक की वृद्धि होगी। अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि व्यवसासियों के लिऐ अचूक बताये जा रहे इस एसजीएसटी विधेयक से व्यापारियों को कितना लाभ या हानि होती है लेकिन हाल फिलहाल इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस विधेयक को अपने विधानसभा सदन में पारित कर उत्तराखण्ड इसे अपने कार्यक्षेत्र में लागू करने वाला छठा राज्य बन गया।

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