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Thursday, April 25, 2024

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अब आ गयी फैसले की घड़ी

पंजाब एंव गोवा में मतदान के लिऐ उल्टी गिनती शुरू (चार फरवरी को होगा मतदान)।

पंजाब और गोवा में चुनाव प्रचार का अभियान समाप्त हुआ इन दोनों ही प्रदेशों की जनता आगामी चार फरवरी को मतदान कर मतदाताओं के भाग्य का फैसला करेगी और फिर मार्च के महिनें पांचों ही राज्यों के चुनाव नतीजे एक साथ सामने आयेंगे। हालांकि यह कहना कठिन है कि आम आदमी पार्टी ने इन दोनों ही जगह अपनी स्थिति को मजबूत किया है और आम आदमी पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं में सरकार गठन को लेकर एक अलग किस्म का उत्साह है जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन भी संतोषजनक कहा जा सकता है तथा यह माना जा रहा है कि इन पांच राज्यों के चुनावों के बाद कांग्रेस एक बार फिर धीरे-धीरे कर सत्ता में वापसी करती दिखेगी लेकिन कांग्रेस के नेताओं के बीच अभी अंसमजस की स्थिति है और उन्हें यह समझ नही आ रहा है कि वह अपनी दुश्मन नंबर एक भाजपा पर हमलावर हो या फिर तेजी से अपना जनाधार बढ़ाती दिख रही आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ने से रोकने में अपनी मेहनत जाया करें। यह ठीक है कि पंजाब और गोवा के मतदाताओं द्वारा अख्त्यिार किये गये केन्द्र की मोदी सरकार विरोधी रूख का सीधा असर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश चुनाव में न पड़ने देने के लिऐ भाजपा ने एक बार फिर मीडिया मेनेजमेंट का सहारा लेकर खुद को आगे बताने की कोशिश जारी रखी है और मुसलिमों के मौलाना या मुफ्तियों द्वारा चुनावी मौको पर दिये जाने वाले फतवों का विरोध करने वाली भाजपा इस वक्त पंजाब व उ.प्र. के कुछ हिस्सों में फैले सन्तों के डेरो व कुटियाओं का समर्थन लेने के लिऐ ऐड़ी चोटी को जोर लगा रही है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि पंजाब के कोने-कोने में फैले धर्म गुरूओं के डेरो व कुटियाओं को लेकर समाज के एक वर्ग की बड़ी आस्था है तथा इन डेरो का असर सिर्फ पंजाब तक सीमित नही है बल्कि यह उत्तर प्रदेश के मैदानी हिस्सों समेत आसपास के अन्य राज्यों की जनता पर भी पूरा असर रखते है। मूलतः धर्म का प्रचार और समाज सेवा करने वाले इन डेरो के धर्मगुरू यूं तो किसी विशेष राजनैतिक दल या व्यक्ति से प्रभावित नही लगते और न ही इन डेरो की चुनावी मौको पर किसी राजनैतिक दल या व्यक्ति को समर्थन देने की परम्परा रही है लेकिन इधर पिछले कुछ समय से इन डेरो के आपसी झगड़ो व भूमि विवादो ने नेताओं को इनकी अन्दरूनी राजनीति में हस्तक्षेप का मौका दिया है ओर डेरा प्रमुखों पर चल रहे विभिन्न आपराधिक मामलों के चलते धर्म के नाम पर जनसामान्य को अपने चरणों में झुकाने वाले इन तथाकथित संत-महात्माआंे को राजनेताओं व राजनैतिक दलो के आगे सर झुकाने को मजबूर होना पड़ा है। काबिलेगौर है कि अपने आध्यत्मिक ज्ञान व प्रवचनों के भाषाई अंदाज के साथ ही साथ कुछ विशेष तरह के चमत्कारों के चलते जनसामान्य के बीच पैठ बनाने वाले इन डेरा प्रमुखों के अनुयायियों की संख्या न सिर्फ लाखों में है बल्कि इनमें दलित व दबे-कुचले समुदाय के लोग ही ज्यादा निष्ठा से जुड़े हुऐ है और अपने गुरू के एक इशारे पर अपना सबकुछ दांव पर लगा देने में इन अनुयायियों को कोई हिचक नहीं है। इन अनुयायियों की अपने डेरो या डेरा प्रमुखों के प्रति इस निष्ठा को देखते हुऐ ही हमारे नेता व राजनैतिक दल इनका समर्थन चाहते है और जनता के सामने इन डेरा प्रमुखों के सम्मुख नतमस्तक दिखाई देने वाले नेता व राजनैतिक दल इनके समर्थन को लेकर एकांत में चलने वाली वार्ताओं के दौरान इन डेरा प्रमुखों की चल रही विभिन्न गोपनीय जांचो व इन पर चल रहे आपराधिक मामलों में इनकी गिरफ्तारी का भय दिखाकर इन्हें डराने-धमकाने से भी गुरेज नही करते। इसलिऐं इन डेरो में से कुछ का समर्थन प्राप्त करने में सत्तापक्ष हमेशा ही कामयाब रहता है और जेल में बैठे आशाराम बापू तथा मृत्यु के बाद बाबा जय गुरूदेव के डेरे के हालात देखने के बाद संत प्रकृति के तमाम डेरा प्रमुख भी चुनावी समर्थन या विरोध को लेकर नेताओं से ज्यादा उलझनें के मूड में नही दिखाई देते लेकिन इन तमाम अध्यात्मिक गुरूओं की अपील का मतदान करने वाली जनता पर कितना असर पड़ता है, यह स्पष्ट रूप से कहा नही जा सकता क्योंकि इन डेरो के जनता के बीच व्यापक प्रभाव को देखते हुऐ जितने भी धर्मगुरूओं ने अपने भक्तों या अनुयायियों के बल पर संसद या विधानसभा पहुंचने की कोशिश की है वह सभी लगभग असफल ही रहे है। इसलिऐं इस तथ्य को दावे से नहीं कहा जा सकता कि डेरा सच्चा सौदा का आर्शीवाद लेेने में सफल तथा पंजाब के मतदान से पहले अन्य तमाम डेरो का राजनैतिक समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही भाजपा को इस सारी जद्दोजहद का कितना फायदा हो सकता है। खैर, जनता का जो भी फैसला होगा वह अब चुनाव नतीजो के रूप में ही सामने आयेगा और अगले दो दिन बाद पंजाब व गोवा के मतदान केन्द्रो में लगी मतदाताओं की लाईने यह आभास भी करा देंगी कि जनता का रूख क्या है लेकिन यह एक आश्चर्यजनक अनुभूति वाला सच है कि बिहार के बाद अब पंजाब की जनता भी नशे के वैध-अवैध व्यापार के खिलाफ एकजुट होती दिखाई दे रही है और क्षेत्रीय पार्टिया व छोटे राजनैतिक दल जनमानस के इस इशारे को समझते हुऐ जनता की आवाज को राजनैतिक मंच उपलब्ध करा रहे है जबकि खुद को राष्ट्रीय राजनीति का पुरोधा मानने वाले राजनेता अभी भी जनता के बीच मुफ्त उपहार बांटने की योजनाओं के सहारे अपनी राजनीति चलाने के मूड में है।

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